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Mata Ka Aanchal (माता का आँचल) Class 10 Important Questions: CBSE Hindi (Kritika) Chapter 1

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Hindi (Kritika) Important Questions for Chapter 1 माता का आँचल (शिवपूजन सहाय) Class 10 - FREE PDF Download

Vedantu’s dedicated page offers important questions and answers for Chapter 1, “Mata ka Anchal” by Shivpujan Sahay, from the Class 10 Hindi (Kritika) textbook, according to the latest CBSE Class 10 Hindi Syllabus. These thoughtfully created questions aim to help you grasp the key themes, ideas, and narrative techniques of the chapter. “Mata ka Aanchal” by Shivpujan Sahay describes the author’s childhood experiences and the warmth of parental affection. Set in a traditional, rural environment, the chapter highlights the profound influence of family bonds, cultural values, and simple joys on a young child’s character formation. Download the FREE PDF for Class 10 Hindi Kritika Important Questions and get the solutions that will improve your understanding of the text, and build your overall confidence in Hindi literature.

Access Class 10 Hindi Chapter 1: Mata Ka Aanchal (माता का आँचल) Important Questions

प्रश्न 1: ‘माता का आँचल’ पाठ में लेखक के बचपन का वातावरण कैसा था? इसका उनके व्यक्तित्व-निर्माण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: ‘माता का आँचल’ में प्रस्तुत बचपन का वातावरण गहरे पारिवारिक स्नेह, धार्मिक अनुशासन और सादगी से ओतप्रोत था। लेखक बचपन में ‘भोलानाथ’ के रूप में उभरते हैं, जिनका अधिकांश समय मित्रों के साथ मस्ती करते और अपने बाबूजी के साहचर्य में बीतता है। बाबूजी की दिनचर्या–प्रातःकालीन स्नान, पूजा-पाठ, राम-नाम लिखना और गंगा तट पर मछलियों को खिलाने की क्रिया–लेखक के बाल मन में नैतिक मूल्यों, धार्मिक आस्था और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता का संचार करती है। वहीं माँ का आँचल उसे भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है, जहाँ वह अपनी शारीरिक और मानसिक चोटों के पश्चात भी पूर्णतः सुरक्षित महसूस करता है। इस तरह माता-पिता के स्नेहपूर्ण परिवेश में उसकी संवेदनशीलता, सहयोगभाव, सरलता और नैतिकता की नींव पड़ती है, जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को गढ़ती है।


प्रश्न 2: लेखक ने अपने पिता को ‘बाबूजी’ और माँ को ‘मइयाँ’ कहकर पुकारा है। इस सम्बोधन के माध्यम से लेखक उनके प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त करता है?
उत्तर: ‘बाबूजी’ और ‘मइयाँ’ जैसे आत्मीय सम्बोधन इस बात का संकेत देते हैं कि लेखक के मन में माता-पिता के प्रति गहरा सम्मान, प्रेम और निकटता है। ‘बाबूजी’ जहाँ एक पिता की अनुशासनप्रिय, मार्गदर्शक और धार्मिक छवि को दर्शाता है, वहीं ‘मइयाँ’ माँ के प्रति उसके भावपूर्ण लगाव, स्नेहपूर्ण साहचर्य और विश्वास को उजागर करता है। ये सम्बोधन बतलाते हैं कि माता-पिता न केवल पालनकर्ता हैं, बल्कि बचपन की सुरक्षा, शिक्षा, संस्कार और वात्सल्य के आधार-स्तंभ भी हैं। इस सम्बोधन में औपचारिकता नहीं, बल्कि गहरी आत्मीयता का भाव है, जो पारिवारिक संबंधों की घनिष्ठता को रेखांकित करता है।


प्रश्न 3: पाठ में लेखक ने अपने पिता के दैनिक धार्मिक क्रियाकलापों का उल्लेख किया है। इन गतिविधियों का बाल मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: पिता के दैनिक धार्मिक अनुष्ठान–प्रातः स्नान, पूजा, राम-नाम का लेखन और मछलियों को आटे की गोलियों का वितरण–बाल मन पर गहरी छाप छोड़ते हैं। इससे बालक के भीतर अनुशासन, समयपालन और संयम के बीज अंकुरित होते हैं। धार्मिक कर्मकाण्ड उसे शांति, श्रद्धा और कर्तव्यपरायणता का पाठ सिखाते हैं। पिता के आचरण से सीखकर बालक समझता है कि जीवन में भौतिकता से अधिक महत्त्व नैतिक मूल्यों, जीवों पर दया और परोपकार को दिया जाना चाहिए। इस प्रकार पिता के धार्मिक कर्म लेखक के नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


प्रश्न 4: माँ की भूमिका इस पाठ में सुरक्षा और संवेदना के प्रतीक के रूप में उभरती है। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर: पाठ में माँ का आँचल एक ऐसा सुरक्षित स्थल है जहाँ बालक अपने सारे भय, दर्द और संवेदनाओं के साथ शरण ले सकता है। वह कभी बच्चे के बालों में तेल लगाकर, कभी रंगीन वस्त्र पहनाकर, कभी पक्षियों के नाम से निवाले खिलाकर अपने वात्सल्य का परिचय देती है। जब बालक चोटिल होकर, डरकर घर पहुँचता है तो माँ का आँचल ही उसे वास्तविक सुरक्षा और सांत्वना प्रदान करता है। पिता की मजबूत बाँहों की जगह बालक उस समय माँ की गोद में अधिक सुरक्षित महसूस करता है। इस प्रकार माँ की भूमिका संबल, संवेदना, प्रेम और अटूट विश्वास का प्रतीक बनकर पाठ में उजागर होती है।


प्रश्न 5: लेखक ने अपने बचपन में खेल-तमाशों का वर्णन किया है। इन खेलों से उस समय के बाल-संसार की विशेषताएँ क्या सामने आती हैं?
उत्तर: लेखक के बचपन में किए गए खेल-तमाशे उस युग के बाल-संसार की सादगी, रचनात्मकता और जीवंतता को दर्शाते हैं। बच्चे बिना किसी आधुनिक साधन के, घरोंदे बनाना, मिठाइयों की दुकान सजाना, बारात निकालना, चिड़ियों और चूहों को पकड़ने की कोशिश करना आदि करते थे। इनमें कल्पनाशीलता, सामूहिक सहयोग और मासूमियत निहित रहती थी। पैसों की जगह जस्ते के टुकड़ों का इस्तेमाल, मिट्टी की मिठाईयाँ बनाना, तंबूरा-शहनाई जैसे देसी वाद्य-यंत्रों का प्रयोग–ये सभी बातें ग्रामीण परिवेश, पारंपरिक संस्कृति और सरल बाल-मन की झलक प्रस्तुत करती हैं। इन खेलों से पता चलता है कि बच्चों को आनंद लेने के लिए आडंबर, तकनीक या विलासिता की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि एक-दूसरे का साथ और कल्पनाशीलता ही पर्याप्त थे।


प्रश्न 6: पिता और पुत्र के संबंध को पाठ में किस प्रकार चित्रित किया गया है?
उत्तर: इस पाठ में पिता-पुत्र का संबंध अनुशासन, प्रेम, मार्गदर्शन और भावनात्मक जुड़ाव से समृद्ध दिखता है। पिता सुबह-सुबह पुत्र को उठाकर स्नान कराते हैं, पूजा में शामिल करते हैं, राम-नाम लिखवाते हैं, मछलियों को खिलाने के लिए साथ ले जाते हैं। ये सारे अनुष्ठान पिता की जिम्मेदार, धार्मिक और स्नेहपूर्ण छवि को उजागर करते हैं। जब बालक को पाठशाला में दंड मिलता है, पिता दौड़कर आते हैं और उसे अपनी गोद में लेकर सांत्वना देते हैं। यद्यपि पिता का व्यक्तित्व अनुशासनप्रिय है, परंतु वे बालक के खेलों में भी हिस्सा लेते हैं और उसकी बाल-सुलभ क्रियाकलापों को प्रशंसात्मक मुस्कान से देखते हैं। इस तरह पिता-पुत्र संबंध में परंपरा, अनुशासन, प्रेम और स्नेह का सुंदर समन्वय मिलता है।


प्रश्न 7: पाठ में आए प्रसंगों से स्पष्ट कीजिए कि तत्कालीन ग्रामीण परिवेश में बच्चे कैसे जीवन-मूल्यों को सीखते थे।
उत्तर: तत्कालीन ग्रामीण परिवेश में बच्चे परिवार, समाज और प्रकृति के सहज जुड़ाव से जीवन-मूल्य सीखते थे। उन्हें बड़ों का सम्मान, अनुशासन का पालन, धार्मिक आस्था, परोपकार, सामूहिकता और रचनात्मकता मूलतः घर-परिवार और आसपास के परिवेश से मिल जाते थे। बच्चों के खेल कल्पनाशील होते हुए भी लोक-परंपरा और नैतिक आदर्शों से जुड़े होते थे। पिता द्वारा रोजमर्रा के धार्मिक अनुष्ठान, माँ के स्नेह-आधारित पोषण, गुरुजी द्वारा अनुशासन और मित्र-मंडली के सामूहिक खेल–इन सभी से बच्चों को जीवन का संतुलित पाठ मिलता था। इस तरह गाँव और परिवार का परिवेश उनके चारित्रिक विकास का आधार बनता था।


प्रश्न 8: पाठ में वर्णित घटना है कि जब बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाते हैं और फिर शिकायत मिलने पर दंडित होते हैं, इससे बच्चों के मन में क्या सीख अंकित होती है?
उत्तर: मूसन तिवारी को चिढ़ाना और फिर पाठशाला में दंडित होना बच्चों को अनुशासन, मर्यादा और दूसरों के प्रति सम्मान का पाठ सिखाता है। इस घटना से स्पष्ट होता है कि बचपन की शरारतों पर तत्कालीन समाज, शिक्षकों और अभिभावकों की कड़ी नज़र रहती थी। दंड मिलने पर बच्चे समझ जाते हैं कि हर कार्य का परिणाम होता है और किसी को चिढ़ाना गलत है। पिता के हस्तक्षेप और गुरुजी की डाँट के माध्यम से बच्चे सीखते हैं कि उन्हें सामुदायिक जीवन में संयम, आदर और सामाजिक मर्यादा का पालन करना चाहिए। इस प्रकार यह प्रसंग बचपन की भूलों के माध्यम से नैतिक शिक्षा का संचरण करता है।


प्रश्न 9: बालक के मन में पिता की तुलना में माँ का आँचल अधिक सुरक्षित क्यों प्रतीत हुआ?
उत्तर: बालक को पिता की मजबूत बाँहें और अनुशासनिक व्यवहार भले ही पसंद हों, परन्तु जब वह अत्यंत डर या दर्द से गुज़रता है, तब उसे माँ का आँचल अधिक सुरक्षित लगता है। माँ का आँचल भावनात्मक सुरक्षा का प्रतीक है, जहाँ किसी शर्त, डर या अनुशासन का भान नहीं होता। माँ की गोद में बालक अपने समस्त भय, दर्द और अशांति को भूल सकता है। इस स्थिति में भावनात्मक संबल शारीरिक सुरक्षा से अधिक प्रभावी हो जाता है। माँ का वात्सल्यपूर्ण प्रेम, आँसू पोंछने की तत्परता, थके हुए शरीर को शांति देने की क्षमता बालक को गहरे स्तर पर आश्वस्त कर देती है।


प्रश्न 10: लेखक ने अपने बचपन का नाम ‘भोलानाथ’ बताया है। इस नाम के पीछे की भावना और पिता द्वारा दिए गए इस नाम का क्या महत्त्व है?
उत्तर: ‘भोलानाथ’ नाम बालक के सरल, निष्कलंक और भोले स्वभाव को अभिव्यक्त करता है। जब भी बालक तिलक लगवाने में आनाकानी करता था, पिता उसे प्यार और डाँट के मिश्रण से तैयार कर देते थे। तब वह भोले बालक की तरह ‘बम-भोला’ सा प्रतीत होता, इसी कारण पिता ने उसे ‘भोलानाथ’ पुकारना शुरू कर दिया। यह नाम दर्शाता है कि बालक का स्वभाव भोला, निष्पाप और शिव की तरह शांत-सरल था। इस नामकरण से पिता-पुत्र के मध्य आत्मीयता और हास-परिहास का भाव भी उजागर होता है।


प्रश्न 11: ‘माता का आँचल’ पाठ को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि परिवार बच्चे के चरित्र-निर्माण की प्रथम पाठशाला है। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर: परिवार बच्चे के प्रथम शिक्षालय की तरह काम करता है, जहाँ उसे मूलभूत नैतिक मूल्य, अनुशासन, आस्था और स्नेह प्राप्त होते हैं। पिता के साथ स्नान, पूजा, राम-नाम लेखन, मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाना–ये सभी गतिविधियाँ बच्चे को सिखाती हैं कि दैनिक जीवन को धार्मिक और सामाजिक मर्यादाओं के साथ संतुलित रखना चाहिए। माँ का आँचल उसे प्रेम, पोषण, मनोवैज्ञानिक सुरक्षा और सहानुभूति प्रदान करता है। मित्रों के साथ किये गए खेल-संसार में कल्पना, सहयोग और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश होता है। इस तरह परिवार के भीतर ही बालक को समाज के मूल गुणों की शिक्षा मिलती है, जो बाद में उसकी नैतिक और भावनात्मक नींव को मजबूत करती है।


प्रश्न 12: पाठ में जो सामूहिक खेलों का चित्रण किया गया है, वह बच्चों के आपसी संबंधों पर क्या प्रकाश डालता है?
उत्तर: सामूहिक खेलों का वर्णन दर्शाता है कि बच्चों के आपसी संबंध गहरे दोस्ताने, सहयोग, समानता और सांझेदारी पर आधारित थे। बच्चे मिलकर घरौंदे बनाते, मिठाई की दुकान सजाते, बारात निकालते, और परस्पर विनिमय करते थे। इन गतिविधियों से उनमें सामूहिकता, समझ, एक-दूसरे के कार्यों का सम्मान और मिल-जुलकर समस्याओं का हल ढूँढने की प्रवृत्ति विकसित होती थी। आपसी संबंधों में कोई भी भेदभाव नहीं दिखता, न ही किसी का प्रभुत्व चलता। इस प्रकार सामूहिक खेल बच्चों में सामाजिक सद्भावना और परस्पर निर्भरता का पाठ पढ़ाते थे।


प्रश्न 13: आम के बाग वाले प्रसंग से बच्चों के साहस, जिज्ञासा और साथ ही उनके डर का वर्णन कीजिए।
उत्तर: आम के बाग में खेलते समय आँधी आना, बारिश होना और फिर बिच्छुओं का दिखना बच्चों में साहस और जिज्ञासा के साथ-साथ भय का भी संचार करता है। आंधी के दौरान आम गिरने पर वे उन्हें उठाने के लिए दौड़ पड़ते हैं, यह उनके साहस और ललक को दर्शाता है। परंतु जब बारिश बंद होने के बाद बिच्छू दिखाई देते हैं, तो वे घबरा जाते हैं और भाग खड़े होते हैं। इसी तरह मूसन तिवारी को चिढ़ाना उनके मन की चंचलता और दुस्साहस को उजागर करता है, परंतु शिकायत होने पर दंड का भय उन्हें अनुशासन का अर्थ सिखा देता है। इस प्रकार बच्चों में प्राकृति व परिस्थिति के अनुरूप विभिन्न मनोभावों का उदय होता है।


प्रश्न 14: पाठ में वर्णित घटनाओं से स्पष्ट कीजिए कि बचपन में मिली सीखें बड़े होकर व्यक्ति के आचरण को कैसे प्रभावित करती हैं।
उत्तर: बचपन में मिली शिक्षाएँ मन पर स्थायी छाप छोड़ती हैं, जो बड़े होने पर व्यक्ति के आचरण, दृष्टिकोण और मूल्यों में प्रतिबिंबित होती हैं। लेखक के बचपन का अनुभव–माता-पिता का प्रेम, अनुशासन, धार्मिक आस्था, सामूहिक खेलों का आनंद, गलतियों पर मिलने वाला दंड–ये सभी बाते उसके भविष्य के दृष्टिकोण को परिपक्व बनाती हैं। ऐसा व्यक्ति बड़े होकर समाज के प्रति संवेदनशील, आस्था-युक्त, नैतिकता से परिपूर्ण और सहयोगी रवैया अपनाता है। इस प्रकार बचपन की गहरी शिक्षा व्यक्तित्व-निर्माण का आधार बनती है।


प्रश्न 15: ‘माता का आँचल’ शीर्षक इस पाठ के भाव-सार को कैसे प्रकट करता है?
उत्तर: ‘माता का आँचल’ शीर्षक माँ की उस असीम करुणा, स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक है, जहाँ बच्चा अपने सभी दुख, भय और चोटों से मुक्त होकर शांति महसूस करता है। पाठ के अंत में जब बालक भयभीत और लहूलुहान घर लौटता है, तब उसे पिता की मजबूत बाँहों की अपेक्षा माँ के आँचल में अधिक सुरक्षा और सहारा मिलता है। शीर्षक पाठ के मूल भाव–मातृत्व की अविरल ममता, परोपकार, संवेदनशीलता और शरण–को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है। यह बताता है कि जीवन की कठिनाइयों में मनुष्य का पहला आश्रय माता का वात्सल्यपूर्ण आँचल ही होता है।


प्रश्न 16: बाबूजी का चरित्र पाठ में किस रूप में उभरता है? उनके चरित्र की किन विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर: बाबूजी का चरित्र अनुशासनप्रिय, धार्मिक, दयालु, संवेदनशील और विनोदी रूप में उभरता है। वे बालक को स्नान, पूजा, राम-नाम लेखन जैसी धार्मिक क्रियाओं से जोड़ते हैं, जिससे उनके धार्मिक रुझान का पता चलता है। जब बच्चे गलती करते हैं, तो वे शिक्षाप्रद ढंग से समझाते हैं और आवश्यकता पड़ने पर पाठशाला में हस्तक्षेप कर बेटे को दिलासा देते हैं। वे बच्चों के खेल से भी आनंदित होते हैं, कभी-कभी असली के पैसों से उनके खेल में सहभागी बनते हैं। इस प्रकार बाबूजी जिम्मेदार पिता, आदर्श शिक्षक, मार्गदर्शक और स्नेही मित्र का संयोग प्रस्तुत करते हैं।


प्रश्न 17: माँ और पिता की भूमिका के बीच क्या अंतर आप देख पाते हैं? उदाहरणों के साथ समझाइए।
उत्तर: माँ और पिता की भूमिकाओं में सूक्ष्म अंतर दिखाई देता है। पिता अनुशासन, मार्गदर्शन और नैतिक मूल्यों के प्रतिपादन में अग्रणी हैं। वे बालक को धार्मिक और नैतिक पथ पर ले जाते हैं। दूसरी ओर माँ भावनात्मक पोषण, देखभाल और स्नेह का अविरल स्रोत है। वह बालक के शारीरिक कष्टों और मानसिक तनाव को अपने आँचल में पिघला देती है। पिता जहाँ कठोर अनुशासन और सामाजिक मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं माँ निश्छल प्रेम और संवेदनात्मक सुरक्षा की प्रतिमूर्ति है। इस प्रकार दोनों मिलकर बालक के सर्वांगीण विकास के लिए पूरक भूमिकाएँ निभाते हैं।


प्रश्न 18: पाठ में बालक के नामों ‘तारकेश्वरनाथ’ और ‘भोलानाथ’ के प्रयोग से लेखक क्या संकेत देना चाहता है?
उत्तर: लेखक ने अपने बचपन के नामों ‘तारकेश्वरनाथ’ और ‘भोलानाथ’ का उल्लेख कर यह बताने का प्रयास किया है कि बचपन में पारिवारिक पृष्ठभूमि, धार्मिक श्रद्धा और स्वभाव के अनुरूप नाम रखे जाते थे। ‘तारकेश्वरनाथ’ नाम धार्मिक आस्था और पूजनीय देवता तारकेश्वर महादेव का संकेत देता है, जबकि ‘भोलानाथ’ नाम बालक की भोली प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। नामकरण समाजिक और धार्मिक चेतना के प्रतिबिंब हैं, जो पारिवारिक मूल्यों, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं।


प्रश्न 19: मूसन तिवारी को चिढ़ाने और फिर दंडित होने वाले प्रसंग की पाठ में क्या महत्ता है?
उत्तर: मूसन तिवारी को चिढ़ाने वाला प्रसंग बाल सुलभ चंचलता, दुस्साहस और फिर उसके परिणाम स्वरूप मिलने वाले दंड को रेखांकित करता है। इससे स्पष्ट होता है कि बालक की शरारतें समाज में स्वीकार्य नहीं होतीं, और अगर वे मर्यादाएं तोड़ते हैं तो उन्हें दंड भोगना पड़ता है। यह प्रसंग सामाजिक अनुशासन, नैतिकता और कर्तव्यबोध का पाठ बच्चों को परोक्ष रूप से सिखाता है। साथ ही, पिता द्वारा विद्यालय में हस्तक्षेप करना बच्चों के प्रति अभिभावकों की जवाबदेही और सामुदायिक भागीदारी का भी परिचायक है।


प्रश्न 20: पाठ में प्रकृति, सामाजिक परिवेश और पारिवारिक मूल्य किस प्रकार एक-दूसरे के पूरक बनते दिखते हैं?
उत्तर: पाठ में प्रकृति (गंगा, आम के बाग, मछलियों को आटे की गोलियाँ), सामाजिक परिवेश (मित्रों का समूह, मूसन तिवारी, गुरुजी, बाज़ार का वातावरण) और पारिवारिक मूल्य (माता-पिता का स्नेह, धार्मिक कर्मकाण्ड, अनुशासन) समन्वित होकर बालक के जीवन को प्रभावित करते हैं। प्रकृति से संवेदनशीलता और दानशीलता, समाज से अनुशासन और मैत्रीभाव तथा परिवार से स्नेह और नैतिक मूल्यों का शिक्षण प्राप्त होता है। इस तरह ये तीनों घटक मिलकर बच्चे की मानसिक, भावनात्मक और नैतिक संरचना को आकार देते हैं।


प्रश्न 21: पाठ में उल्लिखित धार्मिक क्रियाकलापों की आज के संदर्भ में प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
उत्तर: पाठ में उल्लेखित धार्मिक क्रियाकलाप–राम-नाम लेखन, गंगा तट पर मछलियों को गोलियां खिलाना, सुबह-सुबह पूजा–आज के संदर्भ में आध्यात्मिक अनुशासन, प्रकृति के प्रति सहृदयता और सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखने में सहायक हो सकते हैं। आज भले ही जीवन आधुनिक हो गया हो, परंतु मानसिक शांति, मूल्यों की स्थिरता और प्राकृतिक संतुलन की आवश्यकता अब भी बनी हुई है। इन प्राचीन धार्मिक अनुष्ठानों में निहित संदेश हैं–जीवों पर दया, समयपालन, आध्यात्मिक चिंतन–जो आज भी प्रासंगिक हैं और जीवन को संपूर्णता प्रदान कर सकते हैं।


प्रश्न 22: पाठ में मित्र-मंडली के माध्यम से बच्चों की सामूहिक गतिविधियों का वर्णन हुआ है। इन गतिविधियों से बच्चों में कौन-कौन से गुण विकसित हो सकते हैं?
उत्तर: मित्र-मंडली के माध्यम से की गई सामूहिक गतिविधियाँ जैसे घरौंदे बनाना, मिठाइयों की दुकान सजाना, बारात निकालना आदि बच्चों में सहयोग, संगठन, समस्या-समाधान कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और दूसरों के प्रति सम्मान के गुण विकसित करती हैं। खेल के दौरान वे आपसी मतभेदों को सुलझाना, संसाधनों को बाँटना, कल्पनाशीलता से नया रचना, सामूहिक उल्लास और संतुष्टि अनुभव करते हैं। इन सब गुणों से भविष्य में सामाजिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है।


प्रश्न 23: बालक की मनोवैज्ञानिक अवस्था को पाठ में किन-किन घटनाओं द्वारा उकेरा गया है?
उत्तर: बालक की मनोवैज्ञानिक अवस्था पाठ में कई घटनाओं द्वारा स्पष्ट होती है। तिलक लगवाने में आनाकानी करना, आईने में चेहरा देखकर खुश होना, दोस्तों के साथ मस्ती, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, सांप देखकर डरना, चोट लगने पर माँ की गोद में शरण लेना–ये सभी घटनाएँ उसके मन की विविध मनोभावनाओं को प्रकट करती हैं। कभी उत्साह, कभी डर, कभी शर्म, कभी खुशी, कभी दर्द–इन सबका मिश्रण दर्शाता है कि एक बालक का मन कितना तरल और परिवर्तनशील होता है, जो वातावरण के अनुरूप ढलता चलता है।


प्रश्न 24: बाबूजी द्वारा बच्चों के खेल में असली पैसे से खरीदारी करने के प्रसंग का पाठ में क्या महत्त्व है?
उत्तर: जब बाबूजी बच्चों के खेल में असली पैसों से खरीदारी करते हैं, तब यह उनके व्यवहार की सहजता, स्नेह और बाल-सुलभ खेलों को प्रोत्साहन देने की भावना को उजागर करता है। इससे बच्चे को यह एहसास होता है कि उसके खेल, कल्पनाएँ और प्रसन्नता के पल उसके बड़ों द्वारा सम्मानित और आनंदित किए जा रहे हैं। ऐसा करने से बाबूजी बालक के मन में आत्मविश्वास, अपनी रचनात्मकता के प्रति गर्व और बड़ों की स्वीकृति की भावना भरते हैं, जो उसके आत्मविकास में सहायक होता है।


प्रश्न 25: पाठ के अंत में बालक का घर लौटना और माँ के आँचल में शरण लेना किस मूल संदेश को उजागर करता है?
उत्तर: पाठ के अंत में बालक का घबराया हुआ, चोटिल शरीर लेकर घर लौटना और पिता के बजाए माँ के आँचल में शरण लेना यह स्पष्ट करता है कि जीवन की विकट परिस्थितियों में भावनात्मक सुरक्षा की महत्ता सर्वोपरि है। माँ का आँचल प्रेम, दया और करुणा का अक्षय स्रोत है, जहाँ बालक बेखटके अपना दुःख-सुख साझा कर सकता है। यह प्रसंग माँ और बच्चे के बीच के अटूट संबंध, मातृत्व की महिमा तथा पारिवारिक सुरक्षा की अद्वितीयता को रेखांकित करता है। इसके माध्यम से पाठ संदेश देता है कि बाल मन को सुरक्षित आश्रय और प्रेम न मिले तो वह घबरा जाता है, परंतु मातृत्व का आँचल उसे सदैव दिशा और ढाँढस देता है।


Points to Remember from Class 10 Hindi Kritika Chapter 1: Mata Ka Aanchal

  • Written by Shivpujan Sahay, “Mata ka Aanchal” is a reflective piece that draws upon the author’s childhood memories.

  • The narrative is set in a rural environment where family ties, cultural traditions, and simple lifestyles play a significant role.

  • Represents discipline, religious devotion, moral guidance, and routine. He involves his child in daily rituals like bathing early in the morning, offering prayers, writing “Ram Naam,” and feeding fish in the Ganges.

  • Symbolises unconditional love, emotional warmth, and security. Her care provides the child a haven, especially when he is frightened or hurt.

  • The chapter highlights the innocence and creativity of childhood: playing make-believe games, creating sweets from mud, using tin pieces as currency, and organising miniature fairs and processions.

  • The final scenes emphasise a child’s instinctive turn towards maternal comfort in times of fear and distress, underlining the importance of emotional security and affection.

  • Religious practices, daily prayers, and the spiritual environment reflect the deep-rooted cultural ethos and impart moral and ethical values to the child.

  • The chapter conveys how familial love, guided discipline, and a nurturing environment shape a child’s character, mindset, and worldview.


Benefits of Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 1: Mata Ka Aanchal

  • Important questions highlight the central ideas, moral values, and cultural elements of the chapter, ensuring you focus on the most relevant aspects.

  • By attempting these questions, you gain a deeper understanding of the narrative’s setting, character dynamics, emotional undertones, and the author’s purpose.

  • Working through long-answer questions encourages critical thinking, helping you interpret the characters’ actions, the cultural context, and the underlying messages within the text.

  • Writing down structured answers to important questions helps reinforce memory and ensures that key concepts and details stay fresh in your mind.

  • Practising a created set of questions prepares you for various types of questions that may appear in exams, building confidence and improving your ability to articulate well-rounded answers under time constraints.

  • Important questions serve as a targeted revision tool, allowing you to quickly recap the chapter’s main points rather than re-reading the entire text.

  • Formulating comprehensive answers to these questions helps improve your writing style, clarity, coherence, and presentation of thoughts.


Conclusion

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FAQs on Mata Ka Aanchal (माता का आँचल) Class 10 Important Questions: CBSE Hindi (Kritika) Chapter 1

1. What is the significance of the chapter “Mata Ka Aanchal” in the Class 10 Hindi Kritika syllabus?

“माता का आँचल” कक्षा 10 हिंदी कृतिका के पाठ्यक्रम में इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पाठ पारिवारिक मूल्यों, बाल मनोविज्ञान और सांस्कृतिक परिवेश को एक साथ जोड़कर प्रस्तुत करता है। इस रचना के माध्यम से विद्यार्थी यह समझ पाते हैं कि बचपन के अनुभव, माता-पिता के स्नेह, अनुशासन और धार्मिक-सामाजिक संस्कार मिलकर किसी बच्चे के नैतिक और भावनात्मक विकास की नींव कैसे रखते हैं। यह पाठ ग्रामीण जीवन, पारिवारिक सौहार्द और मातृत्व की महत्ता पर प्रकाश डालता है, जिससे छात्रों में संवेदनशीलता, नैतिक मूल्यों और आत्मीयता की भावना विकसित होती है।

2. Can I find all the important questions for “Mata Ka Aanchal” FREE of cost on Vedantu?

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3. Are these important questions aligned with the latest CBSE curriculum and exam format?

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5. Do these important questions come with detailed solutions and explanations for Hindi Class 10 Chapter 1?

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Certainly. The important questions serve as a focused revision tool, allowing you to recap essential points and themes without rereading the entire chapter.

7. Will I need the textbook while practising these questions for Chapter 1 of Hindi Class 10 Kritika?

While the textbook offers the original text and context, the important questions and their solutions are sufficient for focused revision. However, referring back to the textbook can reinforce your understanding.

8. Do the important questions cater to both short-answer and long-answer formats?

Typically, these sets include a variety of question types, from short, objective-style questions to detailed, long-answer ones, ensuring comprehensive practice.

9. Can I access the “Mata Ka Aanchal” important questions PDF on my phone or tablet?

Yes, Vedantu’s platform is mobile-friendly, and you can easily download and access the PDFs on any device for flexible and convenient learning.

10. Will practising these questions improve my language and presentation skills?

Yes. By regularly writing answers, you can refine your expression, sentence structure, coherence, and overall presentation, thereby improving your Hindi language proficiency.

11. What if I have doubts after going through the important questions?

Vedantu often provides additional doubt-clearing sessions, live classes, or discussion forums where you can seek clarification from subject experts.

12. Are these important questions useful for internal assessments and periodic tests as well?

The questions are designed to help you prepare not only for board exams but also for school-level tests, projects, and classroom discussions, ensuring thorough readiness at all stages.