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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 - In Hindi

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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants in Hindi Mediem

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NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT Textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Biology

Chapter Name:

Chapter 2 - Sexual Reproduction in Flowering Plants

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



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We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes. 

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Access NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 – Sexual Reproduction in Flowering Plants

प्रश्नावली

1. एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ, जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है? 

उत्तर: आवृतबीजी पादप (angiospermic plant) पुष्पीय पादप हैं। पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (modified shoot) है जिसका कार्य प्रजनन होता है। पुष्प में निम्नलिखित चार चक्र होते हैं – 

(क) बाह्यदलपुंज (Calyx) – इसका निर्माण बाह्यदल (sepals) से होता है। 

(ख) दलपुंज (Corolla) – इसका निर्माण दल (petals) से होता है। 

(ग) पुमंग (Androecium) – इसका निर्माण पुंकेसर (stamens) से होता है। यह पुष्प का नर जनन चक्र कहलाता है। 

(घ) जायांग (Gynoecium) – इसका निर्माण अण्डप (carpels) से होता है। यह पुष्प का मादा जनन चक्र कहलाता है। 

पुंकेसर के परागकोश (anther) में परागकण मातृ कोशिका (pollen mother cells) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा परागकण (pollen grains) का निर्माण होता है। परागकण नर युग्मकोभिद् (male gametophyte) कहलाता है। अण्डप (carpel) के तीन भाग होते हैं – अण्डाशय (ovary), वर्तिका (style) तथा वर्तिकाग्र (stigma)। अण्डाशय में बीजाण्ड का निर्माण होता है। बीजाण्ड के बीजाण्डकाय की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) अथवा भ्रूणकोष (embryo sac) का विकास होता है। 


(Image will be uploaded soon)


2. लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है ? इन दोनों घटनाओं के अंत में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताइए। 

उत्तर: लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के मध्य निम्न अन्तर हैं –

      लघुबीजाणुधानी

    गुरुबीजाणुधानी

1. यह ब्रह्मा त्वचा मध्यस्तर तथा टेपिटीम  से घिरी रहती है|

2.परागकण मातृ कोशिका से सूक्ष्म बीजाणु बनते है जो कि परागकोश के चारों कोनों पर विकसीत होते हैं।

3.सूक्ष्म बीजाणु मातृ कोशिका के अर्धसुत्र विभाजन द्वारा  अनेक परागणो का निर्माण होता है।

4.परागकोष के स्पून पर परागकण का निर्माण होता होते है।

5. परागकोष के स्पूटन पर परागकण विमुक्त होते हैं। परागकण नर युग्मकोद्भत बनाते हैं।

1. यह बाह्य  तथा अन्त अध्यावरण से घिरी रहती है।

2. गूरुबिजाणू मातृ कोशिका से गूरुबिजाणू बनते हैं जो कि अण्डासय में विकसीत होते है।

3. गूरुबिजाणू मातृ कोशिका के अर्धसुत्र विभाजन से गूरुबिजाणूओ का निर्माण होता है।

4.गूरुबिजाणू से भुर्णकोष बनता है जो मादा यूग्मकोद्भिद बनाता है।


इन घटनाओं के दौरान अर्धसूत्री विभाजन होता है। लघुबीजाणुजनन के अन्त में लघुबीजाणु अथवा परागकण बनते हैं तथा गुरुबीजाणुजनन के अन्त में चार गुरूबीजाणु बनते हैं। 


3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें-परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक। 

उत्तर: उपरोक्त शब्दावलियों का सही विकासीय क्रम निम्नवत् है – बीजाणुजन ऊतक → परागमातृ कोशिका → लघुबीजाणु चतुष्क → परागकण → नरयुग्मक 


4. एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरा नामांकित चित्र बनाइए। (2010, 15, 17) 

उत्तर:


(Image will be uploaded soon)


5. आप मादा युग्मकोभिद् के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं ? 

उत्तर: गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप बने गुरुबीजाणु चतुष्क (tetrad) में से तीन नष्ट हो जाते हैं। तथा केवल एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय होता है जो मादा युग्मकोभिद् का विकास करता है। गुरुबीजाणु का केन्द्रक तीन, सूत्री विभाजनों द्वारा आठ केन्द्रक बनाता है। प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार केन्द्रक व्यवस्थित हो जाते हैं। भ्रूणकोष के बीजाण्डद्वारी ध्रुव पर स्थित चारों केन्द्रक में से तीन केन्द्रक कोशिकाएँ अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं, जबकि निभागी सिरे के चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक एन्टीपोडल कोशिकाएँ (antipodal cells) बनाते हैं। दोनों ध्रुवों से आये एक-एक केन्द्रक, केन्द्रीय कोशिका में संयोजन द्वारा ध्रुवीयकेन्द्रक (polar nucleus) बनाते हैं। चूंकि मादा युग्मकोद्भिद् सिर्फ एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होता है, अत: इसे एक बीजाणुज विकास कहते हैं। 


6. एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोदभिद के 7-कोशिकीय, 8-न्यूक्लिएट (केन्द्रकीय) प्रकृति की व्याख्या करें। 

उत्तर: आवृतबीजी पौधों को मादा युग्मकोभिद् 7-कोशिकीय व 8-केन्द्रकीय होता है जिसके परिवर्धन के समय क्रियाशील गुरुबीजाणु (functional megaspore), प्रथम केन्द्रीय विभाजन द्वारा दो केन्द्रक बनाता है। दोनों केन्द्रक गुरुबीजाणु के दोनों ध्रुवों (माइक्रोपाइल व निभागीय) पर पहुँच जाते हैं। द्वितीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर दो-दो केन्द्रिकाएँ बन जाती हैं। तृतीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर चार-चार केन्द्रक बन जाते हैं। माइक्रोपायलर शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं तथा चौथा केन्द्रक ऊपरी ध्रुव का चक्र बनाता है। निभागीय शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन एन्टीपोडल केन्द्रक तथा चौथा केन्द्रक निचला ध्रुव केन्द्रक का निर्माण करता है। ऊपरी तथा निचला ध्रुवीय केन्द्रक मध्य में आकर संयोजन द्वारा द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) बनाते हैं। अण्ड उपकरण के तीन केन्द्रकों से मध्य वाला केन्द्रक अण्ड (egg) बनाता है। शेष दोनों केन्द्रक सहायक कोशिकाएँ (synergid cells) बनाते हैं। 


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7. उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण सम्पन्न होता है ? अपने अपने उत्तर को सतर्क व्याख्या करे|

उत्तर: की सतर्क व्याख्या करें। उत्तर वे पुष्प जिनके परागकोश तथा वर्तिकाग्र अनावृत (exposed) होते हैं, उन्मील परागणी पुष्प कहलाते हैं। उदाहरण- वायोला, ऑक्जेलिस। अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण नहीं होता है। अनुन्मीलिय पुष्प अनावृत नहीं होते हैं। अतः इनमें पर-परागण सम्भव नहीं होता है। इस प्रकार के पुष्पों के परागकोश तथा वर्तिकाग्र पास-पास स्थित होते हैं। परागकोश के स्फुटित होने पर परागकण वर्तिकाग्र के सम्पर्क में आकर परागण करते हैं। अतः अनुन्मीलिय पुष्प स्व-परागण ही करते हैं। 


8. पुष्पों द्वारा स्व-परागण को रोकने के लिए विकसित की गयी दो कार्यनीतियों का विवरण दें। 

उत्तर: पुष्पों में स्व-परागण को रोकने हेतु विकसित की गयी दो कार्यनीतियाँ निम्न हैं – 

  1. स्व-बन्ध्यता (Self-fertility) – इस प्रकार की कार्यनीति में यदि किसी पुष्प के परागण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो वे उसे निषेचित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण-माल्वा के एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं होते हैं। 

  2. भिन्न काल पक्वता (Dichogamy) – इसमें नर तथा मादा जननांग अलग-अलग समय में | परिपक्व होते हैं जिससे स्व-परागण नहीं हो पाता है। उदाहरण-सैक्सीफ्रेगा कुल के सदस्य। 


9. स्व-अयोग्यता क्या है ? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ? 

उत्तर: स्व-अयोग्यता पुष्पीय पौधों में पायी जाने वाली ऐसी प्रयुक्ति है जिसके फलस्वरूप पौधों में स्व-परागण (self-pollination) नहीं होता है। अतः इन पौधों में सिर्फ पर-परागण (cross pollination) ही हो पाता है। स्व-अयोग्यता दो प्रकार की होती है – 

  1. विषमरूपी (Heteromorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता में एक ही जाति के पौधों के वर्तिकाग्र तथा परागकोशों की स्थिति में भिन्नता होती है अतः परागनलिका की वृद्धि वर्तिकाग्र में रुक जाती है। 

  2. समकारी (Homomorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता विरोधी-S अलील्स (opposition-S-alleles) द्वारा होती है। उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप स्व-अयोग्यता वाली जातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक नहीं पहुँच पाती है। 


10. बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है ? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ? 

उत्तर: बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा परागण में ऐच्छिक परागकणों का उपयोग तथा वर्तिकाग्र को अनैच्छिक परागकणों से बचाना सुनिश्चित किया जाता है। बैगिंग के अन्तर्गत विपुंसित पुष्पों को थैली से ढ़ककर, इनके वर्तिकाग्र को अवांछित परागकणों से बचाया जाता है। पादप जनन में इस तकनीक द्वारा फसलों को उन्नतशील बनाया जाता है तथा सिर्फ ऐच्छिक गुणों वाले परागकण वे वर्तिकाग्र के मध्य परागण सुनिश्चित कराया जाता है। 


11. त्रि-संलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ। 

उत्तर: परागनलिका से मुक्त दोनों नर केन्द्रकों में से एक मादा केन्द्रक से संयोजन करता है। दूसरा नर केन्द्रक भ्रूणकोष में स्थित द्वितीयक केन्द्रक (2n) से संयोजन करता है। द्वितीयक केन्द्रक में दो केन्द्रक पहले से होते हैं तथा नर केन्द्रक से संलयन के पश्चात् केन्द्रकों की संख्या तीन हो जाती है। तीन केन्द्रकों का यह संलयन, त्रिसंलयन (triple fusion) कहलाता है। त्रिसंलयन की प्रक्रिया भ्रूणकोष में होती है तथा इसमें ध्रुवीय केन्द्रक अर्थात् द्वितीयक केन्द्रक व नर केन्द्रक सम्मिलित होते हैं। 


12. एक निषेचित बीजाण्ड में, युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं ? 

उत्तर: निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड में युग्मनज (zygote) का विकास होता है। बीजाण्ड के अध्यावरण दृढ़ होकर बीजावरण (seed coat) बनाते हैं। बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से बीजकवच तथा भीतरी अध्यावरण से अन्तः कवच बनता है। भ्रूणपोष में भोज्य पदार्थ एकत्रित होने लगते हैं। जल की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है, अतः कोमल बीजाण्डे कड़ा व शुष्क हो जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अंदर की कार्यिकी क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा युग्मनज से बना नया भ्रूण सुप्तावस्था में पहुँच जाता है। इसे युग्मनज प्रसुप्ति कहते हैं। बीजावरण से घिरा, एकत्रित भोजन युक्त तथा सुसुप्त भ्रूण युक्त यह रचना, बीज (seed) कहलाती है। 


13. इनमें विभेद करें –

(क) बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक 

उत्तर:

बीजपत्राधार

बीजपत्रोपरिक

बिजपत्राधार में  बिजपत्रो के स्तर से नीचे बेलनाकार प्रोटीन होती है। 

 यह मूलांत सिरा या मूलज के शिर्षत पर समाप्त होती है।

बीजपत्रोपरिक बीजपत्र के स्तर के ऊपर भूणीय अक्ष की प्रोटीन होती हैं।

यह प्रा्कूर या स्तंभ सिरे पर प्राय समाप्त होता है।


(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल 

उत्तर:

प्रांकुर चोल

मूलांकुर चोल

स्कूटेल्म के प्रांकुर को ढकने वाली खोखली परनीय संरचना प्राणकुर चोला कहलाती है।

 यह प्राणकुर को ढकती है।

स्कूटेलम के निचले भाग को मुलंकुर को ढकने वाली प्रत मुलांकुर चोल कहलाती है।

 यह मुलांकुर को ढकती है।


(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल 

उत्तर:

                    अध्यावरण 

                      बीज चोल

अध्यावरण  बिजांड में पाए जाते है।

 बिजांड के दोनो बाहरी आवरण अध्यवरण     कहलाते है।

बीज चोल बीज में पाए जाते है।

 बिजावरण का बाहरी  कड़ा आवरण बीज चोल कहलाता है।


(घ) परिभ्रूण पोष तथा फलभित्ति 

उत्तर:

                      परिभ्रूण पोष

                      फलभित्ति

बीजों की उपस्थित शेष बिजंडकाय परिभूर्ण पोश कहलाता है।

निषेचन के पश्चात अंडाशय की दीवार से विकसित फल का छिलका फलभीति कहलाता है।


14. एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं ? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है ? 

उत्तर: सेब में फल का विकास पुष्पासन (thalamus) से होता है। इसी कारण इसे आभासी फल (false fruit) कहते हैं। फल की रचना, पुष्प के निषेचित अण्डाशय (ovary) से होती है। 


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15. विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ? 

उत्तर: यह एक विधि है जिसका उपयोग  पौधो में पार द्विलिंगी पुष्प की कली अवस्था में, परागकोश को काटकर अलग करने की प्रक्रिया, विपुंसन (emasculation) कहलाती है। यह कृत्रिम परागण की एक तकनीक है तथा इसका प्रयोग पादप प्रजनक द्वारा आर्थिक महत्त्व के पौधों की अच्छी नस्ल बनाने में किया जाता है। विपुंसन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि ऐच्छिक वर्तिकाग्र युक्त पौधे पर ही परागण हो। 


16. यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों ? 

उत्तर: वृद्धि कारकों के प्रयोग द्वारा अनिषेकजनन हेतु हम केले का चयन करेंगे क्योंकि यह बीज रहित होता है। 


17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर: पुंकेसर के परागकोश (anther) में प्रायः चार लघुबीजाणुधानी (microsporangia) बनती हैं। प्रत्येक लघुबीजाणुधानी चार पर्वो वाली भित्ति से आवृत होती है। बाहर से भीतर की ओर इन्हें क्रमशः बाह्य त्वचा (epidermis), अंतस्थीसियम (endothecium), मध्यपर्त (middle layer) तथा टेपीटम (tapetum) कहते हैं। बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को संरक्षण प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं। सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं। 


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18. असंगजनन क्या है ? इसका क्या महत्त्व है ? (2014, 17) 

उत्तर: अलैंगिक जनन की एक सामान्य विधि जिसमें नये पौधे का निर्माण युग्मकों के संलयन के बिना ही होता है, असंगजनन (apomixis) कहलाती है। असंगजनन में गुणसूत्रों का विसंयोजन व पुनःसंयोजन (segregation and recombination) नहीं होता है। अतः इसमें पौधे के लाभदायक गुणों को अनिश्चित समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।


NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants in Hindi

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FAQs on NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 - In Hindi

1. Name the parts of an angiosperm flower in which the development of male and female gametophytes takes place.

The part of an angiosperm flower where the development of male gametophyte occurs is known as anther, while the development of the female gametophyte takes place in the ovary. The development of the male gametophyte begins from the pollen grain and the development of the female gametophyte occurs from the megaspore in the ovule. Students can find detailed explanations provided in the NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 on Vedantu’s website (vedantu.com).

2. What is meant by the monosporic development of female gametophytes?

The female gametophyte is also known as the embryo sac or megagametophyte. Monosporic development refers to the formation of the female gametophyte occurring from one single functional megaspore. In the majority of flowering plants or angiosperms, a single megaspore mother cell undergoes meiosis resulting in four haploid megaspores. In the later stage, one out of the four megaspores is functional and develops into the female gametophyte, and the other three degenerate. To know more students can download the Vedantu app.

3. What concepts can I learn using the NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2?

Chapter 2 in NCERT Solutions for Class 12 Biology is called “Sexual Reproduction in Flowering Plants”. As the title suggests, this chapter talks about the sexual mode of reproduction performed by flowering plants. Various processes involved in sexual reproduction have been explained throughout the chapter. These include fertilization, pollination, and its different types, etc. Students will also be able to learn about the characteristics, location, and functions of the various parts of a flowering plant that are involved in the process of reproduction.

4. What are the most important topics from Chapter 2 in NCERT Solutions for Class 12 Biology?

Since Biology in Class 12 has a vast syllabus, it can be really helpful for students to know the topics that have higher chances of being asked in the exam. Here is a list of important topics in chapter 2 of the NCERT Solutions for Class 12 Biology:

  • Flower structure

  • Development of male and female gametophytes

  • Pollination- types, agencies, examples

  • Outbreeding devices

  • Pollen-pistil interaction

  • Double fertilization

  • Development of endosperm and embryo

  • Development of seed and formation of fruit

  • Apomixis, parthenocarpy, polyembryony

  • Significance of seed dispersal and fruit formation

5. Where can I find the NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 2?

NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter - Sexual Reproduction in Flowering Plants can be easily accessed on Vedantu’s e-platform. These solutions are also available in a PDF that can be downloaded by students free of cost for studying offline. You can also find these solutions available in Hindi by visiting the link NCERT Solutions For Class 12 Biology. Through the help of these solutions, students shall be able to learn better and write accurate answers in their Class 12 Biology exams.