NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 Coordination Compounds Hindi Medium
Download the Class 12 Chemistry NCERT Solutions in Hindi medium and English medium as well offered by the leading e-learning platform Vedantu. If you are a student of Class 12, you have reached the right platform. The NCERT Solutions for Class 12 Chemistry in Hindi provided by us are designed in a simple, straightforward language, which are easy to memorise. You will also be able to download the PDF file for NCERT Solutions for Class 12 Chemistry in Hindi from our website at absolutely free of cost.
NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.
Class: | |
Subject: | |
Chapter Name: | Chapter 9 - Coordination Compounds |
Content-Type: | Text, Videos, Images and PDF Format |
Academic Year: | 2023-24 |
Medium: | English and Hindi |
Available Materials: |
|
Other Materials |
|
Note:➤ Don't Miss Out: Get Your Free NEET Rank Predictor Instantly!
We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes.
Access NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 – उपसहसंयोजक यौगिक
1. वर्नर की अभिधारणाओं के आधार पर उपसहसंयोजक यौगिकों में आबन्धन को समझाइए।
उत्तर: उपसहसंयोजन यौगिकों में आबन्धन को समझाने के लिए वर्नर ने सन् 1898 में उपसहसंयोजन यौगिकों का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की मुख्य अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं:
उपसहसंयोजन यौगिकों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएँ दर्शाती हैं:
(1) प्राथमिक (2) द्वितीयक।
प्राथमिक संयोजकताएँ सामान्य रूप से धातु परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था से सम्बन्धित होती हैं, तथा आयनित होती हैं। ये संयोजकताएँ ऋणायनों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं।
द्वितीयक संयोजकताएँ धातु परमाणु की उपसहसंयोजक संख्या से सम्बन्धित होती हैं। द्वितीयक संयोजकताएँ आयनित नही होती हैं। ये उदासीन तथा ऋणात्मक लिगेण्डों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकता उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है तथा इसका मान किसी धातु के लिए सामान्यत: निश्चित होता है। धातु से द्वितीयक संयोजकता से आबन्धित आयन समूह विभिन्न उपसहसंयोजन संख्या के अनुरूप दिक्स्थान में विशिष्ट रूप से व्यवस्थित रहते हैं।
आधुनिक सूत्रीकरण में इस प्रकार की दिक्स्थान व्यवस्था को समन्वय बहुफलक कहते हैं। गुरुकोष्ठक में लिखी स्पीशीज संकुल तथा गुरु कोष्ठक के बाहर लिखे आयन प्रति आयन (counter ions) कहलाते हैं। उन्होंने यह भी अभिधारणा दी कि संक्रमण तत्वों के समन्वय यौगिकों में सामान्यतः अष्टफलकीय, चतुष्फलकीय व वर्ग समतली ज्यामितियाँ पायी जाती हैं।
इस प्रकार,
[Co(NH3)6]3+, [CoCl(NH3)5]2+ तथा [CoCl2(NH3)4]+ की ज्यामितियाँ अष्टफलकीय हैं, जबकि [Ni(CO)4)] तथा [PtCl4]2- क्रमश: चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतलीय हैं।
उपर्युक्त अभिधारणाओं से वर्नर, जिसने निम्नलिखित यौगिकों को कोबाल्ट (III) क्लोराइड की NH3 से अभिक्रिया करके बनाया, ने इन यौगिकों (उपसहसंयोजक) की संरचना की सफलतापूर्वक व्याख्या की जिसका वर्णन निम्नलिखित है :
CoCl3.6NH3 नारंगी
CoCl3.5NH3 .H2O गुलाबी
CoCl3.5NH3 बैंगनी
CoCl3.4NH3 बैंगनी
CoCl3.3NH3 हरा
CoCl3.4NH3 के विभिन्न रंगों का कारण यह है कि यह समपक्ष तथा विपक्ष समावयवी के रूप में उपस्थित होता है।
(image will be uploaded soon)
2. FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1 : 1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयन का परीक्षण देता है, परन्तु CuSO4 व जलीय अमोनिया का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता। समझाइए क्यों?
उत्तर: FeSO4 विलयन को (NH4)2SO4 विलयन में 1 : 1 मोलर अनुपात में मिश्रित करने पर एक द्विक-लवण प्राप्त होता है, जिसे मोहर लवण (FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O) कहते हैं। यह निम्न प्रकार आयनित होता है:
\[FeS{{O}_{4}}.{{(N{{H}_{4}})}_{2}}S{{O}_{4}}.6{{H}_{2}}O\xrightarrow{{}}F{{e}^{2+}}+2N{{H}_{4}}^{+}+3S{{O}_{4}}^{2-}+6{{H}_{2}}O\]
विलयन में Fe2+ आयनों की उपस्थिति के कारण यह Fe2+ आयन का परीक्षण देता है। जब CuSO4 विलयन को जलीय अमोनिया में 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रित किया जाता है, तो संकर लवण [Cu(NH3)4]SO4 प्राप्त होता है।
यह विलयन में निम्न प्रकार आयनित होता है:
\[[Cu{{(N{{H}_{3}})}_{4}}]S{{O}_{4}}\to {{[Cu{{(N{{H}_{3}})}_{4}}]}^{2+}}+SO_{4}^{2-}\]
संकर आयन [Cu(NH3)4]2+ पुन: आयनित होकर Cu2+ आयन नहीं देता है। इसलिए विलयन Cu2+ आयन का परीक्षण नहीं देता है।
3. प्रत्येक के दो उदाहरण देते हुए निम्नलिखित को समझाइए-समन्वय समूह, लिगेण्ड, उपसहसंयोजन संख्या, उपसहसंयोजन बहुफलक, होमोलेप्टिक तथा हेटरोलेप्टिक। या उपसहसंयोजक (समन्वय) संख्या को एक उदाहरण द्वारा ज्ञात कीजिए। (2018)
उत्तर:
1. उपसहसंयोजन सत्ता या समन्वय समूह:
केन्द्रीय धातु परमाणु अथवा आयन से किसी एक निश्चित संख्या में आबन्धित आयन अथवा अणु मिलकर एक उपसहसंयोजन सत्ता का निर्माण करते हैं।
उदाहरणार्थ: [CoCl3(NH3)3] एक उपसहसंयोजन सत्ता है। जिसमें कोबाल्ट आयन तीन अमोनिया अणुओं तथा तीन क्लोराइड आयनों से घिरा है। अन्य उदाहरण हैं – [Ni(CO)4],[PtCl2(NH3)2], [Fe(CN)6]4-, [Co(NH3)6]3+ आदि।
2. लिगेण्ड (Ligand):
उपसहसंयोजन सत्ता में केन्द्रीय परमाणु/आयन से परिबद्ध आयन अथवा अणु लिगेण्ड कहलाते हैं। ये सामान्य आयने हो सकते हैं; जैसे: Cl–, F–, CN–, OH– छोटे अणु हो सकते हैं; जैसे- H2O या NH3, बड़े अणु हो सकते हैं; जैसे: H2NCH2CH2NH2 या N(CH2CH2NH2)3 अथवा वृहदाणु भी हो सकते हैं; जैसे: प्रोटीन।
3. उपसहसंयोजन संख्या:
एक संकुल में धातु आयन की उपसहसंयोजन संख्या (CN) उससे आबन्धित लिगेण्डों के उन दाता परमाणुओं की संख्या के बराबर होती है, जो सीधे धातु आयन से जुड़े हों।
उदाहरणार्थ: संकुल आयनों [PtCl6]2- तथा [Ni(NH3)4]2+ में Pt तथा Ni की उपसहसंयोजन संख्या क्रमश: 6 तथा 4 है। इसी प्रकार संकुल आयनों [Fe(C2O4)3]3- और [Co(en)3]3+ में Fe और Co दोनों की समन्वय संख्या 6 है क्योंकि C2O42- तथा en (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) द्विदन्तुक लिगेण्ड हैं। उपसहसंयोजन संख्या के सन्दर्भ में यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि केन्द्रीय परमाणु/आयन की उपसहसंयोजन संख्या केन्द्रीय परमाणु/आयन तथा लिगेण्ड के मध्य बने केवल s (सिग्मा) आबन्धों की संख्या के आधार पर ही निर्धारित की जाती है। यदि लिगेण्ड तथा केन्द्रीय परमाणु/आयन के मध्य π (पाई) आबन्ध बने हों तो उन्हें नहीं गिना जाता।
4. उपसहसंयोजन बहुफलक:
केन्द्रीय परमाणु/आयन से सीधे जुड़े लिगेण्ड परमाणुओं की त्रिआयामी व्यवस्था को उपसहसंयोजन बहुफलक कहते हैं। इनमें अष्टफलकीय, वर्ग समतलीय तथा चतुष्फलकीय मुख्य हैं। उदाहरणार्थ– [Co(NH3)6]3+ अष्टफलकीय है, [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय है तथा [PtCl4]2- वर्ग समतलीय है। चित्र-1 में विभिन्न उपसहसंयोजन बहुफलकों की आकृतियाँ दर्शायी गई हैं।
(image will be uploaded soon)
अष्टफलकीय
(image will be uploaded soon)
चतुष्फलकीय
(image will be uploaded soon)
वर्ग-समतलीय
(image will be uploaded soon)
त्रिकोणिय व्दिसमतलीय
(image will be uploaded soon)
वर्ग-पिरैमिडी
विभिन्न उप-सहसंयोजन बहुफलकों की आकृतियाँ – M केन्द्रीय परमाणु /आयन को तथा एकदन्तुक लिगेण्ड को प्रदर्शित करता है।
5. होमोलेप्टिक:
संकुल जिनमें धातु परमाणु केवल एक प्रकार के दाता समूह (लिगेण्ड) से जुड़ा रहता है, होमोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ: [Co(NH3)6]3+ तथा [Fe(CN)6]4-.
6. हेटरोलेप्टिक:
संकुल जिनमें धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों (लिगेण्डों) से जुड़ा रहता है, हेटरोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ: [Co(NH3)4Cl2]+ तथा [Pt(NH3)5Cl]3+
4. एकदन्तुक, द्विदन्तुक तथा उभयदन्तुक लिगेण्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर: लिगेण्ड का एक परमाणु दाता परमाणु होता है जो केन्द्रीय धातु आयन को एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म दान करके उपसहसंयोजक आबन्ध बनाता है। जब एक लिगेण्ड धातु आयन से एक दाता परमाणु द्वारा परिबद्ध होता है; जैसे: Cl–, H2O या NH3 तो लिगेण्ड एकदन्तुक कहलाता है। जब लिगेण्ड दो दाता परमाणुओं द्वारा परिबद्ध होता है; जैसे: H2NCH2CH2NH2 (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) अथवा C2O42- (ऑक्सेलेट) तो ऐसा लिगेण्ड द्विदन्तुक कहलाता है। वह लिगेण्ड जो दो भिन्न परमाणुओं द्वारा जुड़ सकता है, उसे उभयदन्ती संलग्नी या उभयदन्तुक लिगेण्ड कहते हैं।
उदाहरणार्थ: NO2– तथा SCN– आयन।
NO2– आयन, केन्द्रीय धातु परमाणु/आयन से या तो नाइट्रोजन द्वारा अथवा ऑक्सीजन द्वारा संयोजित हो सकता है। इसी प्रकार SCN– आयन सल्फर अथवा नाइट्रोजन परमाणु द्वारा संयोजित हो सकता है।
(image will be uploaded soon) (image will be uploaded soon)
नाइट्रेटो-N नाइट्रिटो -O
(image will be uploaded soon) (image will be uploaded soon)
थायोसायनेटो आईसोथायोसायनेटो
5. निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में धातुओं के ऑक्सीकरण अंक का उल्लेख कीजिए:
[Co(H2O)(CN)(en)2]2+, [CoBr2(en)2]+, [PtCl4]2- [K3[Fe(CN)6] [Cr(NH3)3Cl3].
उत्तर: माना कि दिये गये संकर आयनों में धातु के ऑक्सीकरण अंक x हैं।
[Co(H2O)(CN)(en)2]2+
$x+0+(-1)+2(0)=+2 \\$
$x=+3 \\$
[CoBr2(en)2]+
$x+2(-1)+2(0)=+1 \\$
$ x=+3 \\$
[PtCl4]2-
$x+4(-1)=-2 \\$
$x=+2 \\$
[K3[Fe(CN)6] [Cr(NH3)3Cl3]
$3(+1)+x+6(-1)=0 \\$
$x=+3 \\$
$x+3(0)+3(-1)=0 \\$
$x=+3 \\$
6. IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के लिए सूत्र लिखिए –
(a)टेट्राहाइड्रॉक्सोजिंकेट(II)
(b)हेक्सामाइनप्लैटिनम(IV)
(c) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(d)टेट्रा ब्रोमिडोक्यूप्रेट(II)
(e) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट(III) सल्फेट
(f) पोटैशियम टेट्रासायनिडोनिकिलेट (II)
(g) पोटेशियम-ट्राइ-(ऑक्जेलेटो)क्रोमेट(III)
(h) पेन्टाएमीननाइट्रो-O-कोबाल्ट(III)
(i) डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लैटिनम (II)
(j)पेन्टाऐम्मीनंनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट(III)
उत्तर: (a)टेट्राहाइड्रॉक्सोजिंकेट(II): [Zn(OH)4]2-
(b)हेक्सामाइनप्लैटिनम(IV) : [Pt(NH3)6]4+
(c) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II) : K2[PdCl4]
(d) टेट्राब्रोमिडोक्यूप्रेट(II) : [CuBr4]2-
(e) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट(III) सल्फेट : [Co(NH3)6]2(SO4)3
(f) पोटैशियम टेट्रासायनिडोनिकिलेट(II): K2[Ni(CN)4]
(g) पोटेशियम-ट्राइ-(ऑक्जेलेटो)क्रोमेट(III): K3[Cr(OX)3]
(h) पेन्टाएमीननाइट्रो-O-कोबाल्ट(III): [Co(NH3)5(ONO)]2+
(i) डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लैटिनम (II) : [Pt(NH3)2Cl2]
(j)पेन्टाऐम्मीनंनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट(III): [Co(NH3)5(NO2)]2+
7. IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के सुव्यवस्थित नाम लिखिए :
[Co(NH3)6]Cl3
[Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl
[Ti(H2O)6]3+
[Co(NH3)4Cl(NO2)]Cl
[Mn(H2O)6]2+
[NiCl4]2-
[Ni(NH3)6]Cl2
[Co(en)3]3+
[Ni(CO)4]
उत्तर:
1. [Co(NH3)6]Cl3 हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
2. [Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl डाइऐम्मीनक्लोरिडो( मेथिल ऐमीन)प्लैटिनम (II) क्लोराइड
3. [Ti(H2O)6]3+ हेक्साऐक्वाटाइटेनियम (III) आयन
4. [Co(NH3)4Cl(NO2)]Cl टेट्राऐम्मीनक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III) क्लोराईड
5. [Mn(H2O)6]2+ हेक्साऐक्वामैंगनीज (II) आयन
6. [NiCl4]2- टेट्राक्लोरिडोनिकिलेट (II) आयन
7. [Ni(NH3)6]Cl2 हेक्साऐम्मीननिकिल (II) क्लोराइड
8. [Ni(CO)4] ट्रिस(एथेन-1,2-डाइऐमीन) कोबाल्ट (III) आयन
8. उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए सम्भावित विभिन्न प्रकार की समावयवताओं को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: उपसहसंयोजन यौगिकों में दो प्रमुख प्रकार की समावयवताएँ ज्ञात हैं। इनमें से प्रत्येक को पुनः विभाजित किया जा सकता है।
(image will be uploaded soon)
संरचनात्मक समावयवता संरचनात्मक समावयवता के प्रकार और उदाहरण
बंधनी समावयवता
[Co(NH3)2(NO2)]Cl2 तथा [Co(NH3)2(ONO)]Cl2
उपसहसंयोजन समावयवता
[Co(NH3)2][Cr(CN)6] तथा [Cr(NH3)2][Co(CN)6]
आयनन समावयवता
[Co(NH3)2Cl2]NO2 तथा [Co(NH3)2(NO2)Cl]Cl
विलायकयोजन समावयवता
[Cr(H2O)6]Cl3 तथा [Cr(H2O)5Cl]Cl2.H2O
ज्यामितिय समावयवता
उदाहरण
(image will be uploaded soon)
संपक्ष समावयव विपक्ष समावयव
ध्रुवण समावयवता
उदाहरण
(image will be uploaded soon)
दर्पण
9. निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में कितने ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं? [Cr(C2O4)3]3- [Co(NH3)Cl3]
उत्तर: यह [M(AA)3]n± प्रकार का संकर आयन है तथा ज्यामितीय समावयवता प्रदर्शित करने में असमर्थ है। इसलिए इसका कोई ज्यामितीय समावयवी सम्भव नहीं है। दो (फेशियल तथा पेरीफेरल)।
10. निम्नलिखित के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए –
(i)[Cr(C2O4)3]3-
(ii)[PtCl2(en)2]2+
(iii)[Cr(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर:
(image will be uploaded soon)
(image will be uploaded soon)
(image will be uploaded soon)
11. निम्नलिखित के सभी समावयवों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए:
[CoCl2(en)2]+ , [Co(NH3)Cl(en)2]2+ , [Co(NH3)Cl2(en)]+
उत्तर: 1. [CoCl2(en)2]+
(image will be uploaded soon)
2. [Co(NH3)Cl(en)2]2+
(image will be uploaded soon)
3. [Co(NH3)Cl2(en)]+
(image will be uploaded soon)
सभी असममिताकार हैं, इसलिए सभी प्रकाशिक समावयवता अर्थात् d(+) तथा l(-) रूप प्रदर्शित करेंगे जो एक-दूसरे पर अध्यारोपित न होने वाले दर्पण प्रतिबिम्ब हैं।
12. [Pt(NH3)(Br)(Cl)(Py)] के सभी ज्यामितीय समावयव लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण अर्थात प्रकाशिक समावयवता दर्शाएँगे?
उत्तर: दिए गए यौगिक के तीन ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं।
(image will be uploaded soon)
इस प्रकार के समावयव ध्रुवण समावयवता नहीं दर्शाते हैं। ध्रुवण समावयवता वर्ग समतली या चतुष्फलकीय संकुलों में दुर्लभ रूप में पायी जाती है। जबकि इनमें असममिताकार किलेटिंग लिगेण्ड उपस्थित हों।
13. जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है – जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड के साथ हरा रंग जलीय पोटैशियम क्लोराइड के साथ चमकीला हरा रंग। उपर्युक्त प्रायोगिक परिणामों को समझाइए।
उत्तर: जलीय कॉपर सल्फेट विलयन [Cu(H2O)4]SO4 के रूप में स्थित रहता है तथा [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण इसका रंग नीला होता है।
1. जब KF विलयन मिलाया जाता है, तो दुर्बल H2O लिगेण्ड प्रबल F- लिगेण्ड्स के द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं। इस प्रकार, [CuF4]2- आयन बनते हैं, जो हरा अवक्षेप देते हैं।
\[{{[Cu{{({{H}_{2}}O)}_{4}}]}^{2+}}+4{{F}^{-}}\to {{[Cu{{(F)}_{4}}]}^{2-}}+4H{}_{2}O\]
2. जब KCl विलयन मिलाया जाता है तो Cl– लिगेण्ड्स दुर्बल H2O लिगेण्ड्स को प्रतिस्थापित कर देते हैं और [CuCl4]2- आयन बनाते हैं, जो चमकीले हरे रंग के होते हैं।
\[{{[Cu{{({{H}_{2}}O)}_{4}}]}^{2+}}+4C{{l}^{-}}\to {{[Cu{{(Cl)}_{4}}]}^{2-}}+4H{}_{2}O\]
14. कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी? इस विलयन में जब H2S गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता?
उत्तर: जब जलीय KCN विलयन को जलीय कॉपर सल्फेट के विलयन में मिलाया जाता है, तो निम्न प्रकार से [Cu(CN)4]2- उपसहसंयोजन स्पीशीज प्राप्त होती है –
\[{{[Cu{{({{H}_{2}}O)}_{4}}]}^{2+}}+4C{{N}^{-}}\to {{[Cu{{(CN)}_{4}}]}^{2-}}+4H{}_{2}O\]
इस प्रकार बनी उपसहसंयोजन स्पीशीज [Cu(CN)4]2- अत्यधिक स्थिर होती है क्योंकि CN– प्रबल लिगेण्ड होते हैं। इसलिए इस विलयन में H2S गैस प्रवाहित करने पर CuS का अवक्षेप प्राप्त नहीं होता है क्योंकि मुक्त Cu2+ आयन उपलब्ध नहीं होते हैं।
15. संयोजकता आबन्धसिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए:
[Fe(CN)6]4-, [FeF6]3-, [CO(C2O4)3]3- , [COF6]3-
उत्तर: 1. [Fe(CN6)]4- :
इस संकुल आयन में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है।
Fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d64s2
Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar]3d6 छ: सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए आयरन (II) आयन को छह रिक्त कक्षक उपलब्ध करने चाहिए। ऐसा निम्नलिखित संकरण पद्धति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जिसमें d-उपकोश के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं, चूँकि CN– आयन प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड हैं।
अत: छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्म आयरन (II) आयन के छह संकरित कक्षकों को अध्यासित कर लेते हैं। इस प्रकार किसी भी कक्षक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकत्व दर्शाता है। अतः [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय है।
Fe2+ आयन के परमाणु कक्षक (image will be uploaded soon)
Fe2+ आयन के d2sp3संकरित कक्षक (image will be uploaded soon)
[Fe(CN)6]4- आयन के d2sp3संकरित कक्षक
(image will be uploaded soon)
अत: छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्म आयरन (II) आयन के छह संकरित कक्षकों को अध्यासित कर लेते हैं। इस प्रकार किसी भी कक्षक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकत्व दर्शाता है। अतः [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय है।
2. [FeF6]3- :
यह संकुल उच्च चक्रण (या चक्रण मुक्त) या बाह्य संकुल है, चूंकि केन्द्रीय धातु आयन, Fe(III) संकरण के लिए nd-कक्षकों का प्रयोग करता है। यह एक अष्टफलकीय संकुल है। जिसमें sp3d2 संकरण होता है, प्रत्येक कक्षक में छह फ्लुओराइड आयनों से एक-एक एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म स्थान प्राप्त करता है जैसा कि निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है:
(image will be uploaded soon)
चूँकि संकुल में पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, अत: यह अनुचुम्बकीय है।
3. [CO(C2O4)3]3-
Co (Z = 27) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: [Ar]3d74s2
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास : [Ar]3d64s0
C2O42- प्रबल क्षेत्रीय लिगेण्ड है जिसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
अतः स्पष्ट है कि [Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।
(image will be uploaded soon)
4. [CoF6]3- :
Co (27) : [Ar]3d74s2
Co3+ : [Ar]3d64s0
F– एक दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड होने के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं कर सकता है।
अतः [CoF6]3- अनुचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।
(image will be uploaded soon)
16. अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d-कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।
उत्तर: माना छह लिगेण्ड कार्तिक अक्षों के अनुदिश सममित रूप से
स्थित हैं तथा धातु परमाणु मूल बिन्दु पर है। लिगेण्ड के निकट आने पर d-कक्षकों की ऊर्जा में मुक्त आयनों की तुलना में अपेक्षित वृद्धि होती है। जैसा कि गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की स्थिति में होता है। अक्षों के अनुदिश कक्षक (dz2 तथा dx2–y2), dxy , dyz तथा dzx
कक्षकों की तुलना में अधिक प्रबलता से प्रतिकर्षित होते हैं तथा इनमें अक्षों के मध्य
निर्देशित पालियाँ होती हैं। गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र में औसत ऊर्जा की अपेक्षा dz2 तथा dx2–y2 कक्षक ऊर्जा में बढ़ जाते हैं तथा dxy, dyz, dzx, कक्षक ऊर्जा में न्यून हो जाते हैं।
अतः d- कक्षकों का समभ्रंश समूह दो समूहों में विपाटित हो जाता है:
निम्न ऊर्जा कक्षक समूह t2g तथा उच्च ऊर्जा कक्षक समूह eg ऊर्जा Δ0 द्वारा पृथक्कृत होती हैं।
(image will be uploaded soon)
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d-कक्षकों के विपाटन
17. स्पेक्टमीरासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: स्पेक्टमरासायनिक श्रेणी:
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, Δ0 लिगेण्ड तथा धातु आयन पर विद्यमान आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगेण्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं तथा ऐसी स्थिति में विपाटन अधिक होता है, जबकि अन्य दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके फलस्वरूप d-कक्षकों का विपाटन कम होता है। सामान्यत: लिगण्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जा सकता है:
– I– < Br– < SCN– < Cl– < S2- < F– < OH– < C2O42- < H2O < NCS– < EDTA4- < NH3 < en < CN– < CO
इस प्रकार की श्रेणी स्पेक्ट्रमरासायनिक श्रेणी कहलाती है। यह विभिन्न लिगेण्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण पर आधारित प्रायोगिक तथ्यों द्वारा निर्धारित श्रेणी है।
दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के मध्य अन्तर:
वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE), Δ0 का मान कम होता है, दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा ये उच्च चक्रण संकुल बनाते हैं। वे लिगेण्ड जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 का मान अधिक होता है, प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं। प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है तथा ये निम्न चक्रण संकुल बनाते हैं।
18. क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में 4-कक्षकों का वास्तविक विन्यास A, के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर: जब लिगेण्ड संक्रमण धातु आयन के निकट जाता है, तब d-कक्षक दो समुच्चयों में विपाटित हो जाते हैं, एक निम्न ऊर्जा के साथ तथा दूसरा उच्च ऊर्जा के साथ। कक्षकों के इन दो समुच्चयों के बीच ऊर्जा का अन्तर अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, Δ0 कहलाता है। यदि Δ0 < P (युग्मन ऊर्जा) तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है, कक्षक में प्रवेश करता है तथा t32g e1g विन्यास देकर उच्च चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 < P) दुर्बल क्षेत्र लिंगैण्ड कहलाते हैं। यदि Δ0 > P तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक है t2g कक्षक में युग्मित होता है तथा
t2g 4 eg0 विन्यास देकर निम्न चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, Δ0 > P) प्रबल क्षेत्र लिंगेण्ड कहलाते है।
19. [Cr(NH3)6] अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CN)4] प्रतिचुम्बकीय, समझाइए क्यों?
उत्तर: [Cr(NH3)6]3+ का निर्माण:
आयन में क्रोमियम की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है। क्रोमियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d54s1 है। संकरण को निम्नलिखित आरेख में दर्शाया गया है:
(image will be uploaded soon)
Cr3+ आयन अमोनिया के छह अणुओं से छ: इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए छह रिक्त कक्षक उपलब्ध कराते हैं। परिणामत: संकुल [Cr(NH3)]3+ में d2sp3 संकरण होता है तथा यह अष्टफलकीय होता है। संकुल में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति इसके अनुचुम्बकीय गुण को स्पष्ट करती हैं।
[Ni(CN)4]2- का निर्माण :
[Ni(CN)4]2- में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d है। संकरण को निम्नवत् समझाया जा सकता है:
प्रत्येक संकरित कक्षक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति [Ni(CN)4]2- के प्रतिचुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि करती है।
(image will be uploaded soon)
Ni2+ आयन के d2sp3संकरित कक्षक (image will be uploaded soon)
[Ni(CN)4]2 निम्न चक्रण संकुल
(image will be uploaded soon)
प्रत्येक संकरित कक्षक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति [Ni(CN)4]2- के प्रतिचुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि करती है।
20. [Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है, परन्तु [Ni(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।
उत्तर: [Ni(H2O)6]2+ विलयन में निकिल Ni2+ के रूप में स्थित रहता है तथा इसका 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। इसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो कि दुर्बल जल लिगेण्डों की उपस्थिति में युग्मित नहीं हो पाते हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन d – d संक्रमण प्रदर्शित करते हैं जिसमें Ni2+ लाल प्रकाश अवशोषित करता है। इसलिए, संकर पूरक हरा रंग प्रदर्शित करता है। [Ni(CN)4]2- में भी निकिल Ni2+ आयन के रूप में रहता है। इसका भी 3d8 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है, जिसमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं परन्तु प्रबल CN– लिगेण्ड युग्मित हो जाते हैं अतः अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति में d- d संक्रमण नहीं होता है तथा विलयन रंगहीन रहता है।
21. [Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?
उत्तर: दोनों जटिलों में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d6 है। तथा इसमें चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। [Fe(CN)6]4- में CN– लिगेण्ड्स प्रबल हैं तथा इलेक्ट्रॉनों को युग्मित कर देते हैं जबकि [Fe(H2O)6]2+ में H2O लिगेण्ड्स दुर्बल हैं तथा इलेक्ट्रॉनों को युग्मित करने में असमर्थ होते हैं। अत: अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या में अन्तर के कारण ये जटिल तनु विलयन में भिन्न-भिन्न रंग प्रदर्शित करते हैं।
22. धातु काबनिलों में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर: धातु कार्बोनिलों में आबन्ध की प्रकृति:
धातु कार्बोनिलों में निम्नलिखित दो प्रकार के आबन्धन सम्मिलित होते हैं:
(i) CO के कार्बन से एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म का धातु परमाणु के उचित रिक्त कक्षक में दान, यह एक अप्रत्यक्ष अतिव्यापन है तथा एक सिग्मा M ← C आबन्ध बनाता है।
(ii) π-अतिव्यापन जिसमें पूरित धातु d-कक्षकों से इलेक्ट्रॉनों का CO के रिक्त प्रतिआबन्धन π* आण्विक कक्षकों में दान निहित होता है। इसके परिणामस्वरूप M → C π आबन्ध बनता है। धातु से लिगेण्ड का आबन्ध एक सहक्रियाशीलता का प्रभाव उत्पन्न करता है जो CO व धातु के मध्य आबन्ध को मजबूत बनाता है। धातु कार्बोनिलों में आबन्धन निम्नवत् प्रदर्शित है :
(image will be uploaded soon)
23. निम्नलिखित संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d-कक्षकों का अधिग्रहण एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए –
(i) K3[Co(C2O4)3]
(ii)Cis-[CrCl2(en)2]Cl
(iii)(NH4)[CoF4]
(iv)[Mn(H2O)6]SO4
उत्तर:
क्र. सं | संकर यौगिक | ऑक्सीकरण | उपसहसंयोजन संख्या | केन्द्रीय धातु आयन | d-कक्षकों का समावेशन |
(I) | K3[Co(C2O4)3] | +3 | 6 | Co3+ | 3d6, t2g6, eg0 |
(II) | Cis-[CrCl2(en)2]Cl | +3 | 6 | Cr3+ | 3d3, t2g3 |
(III) | (NH4)2[CoF4] | +2 | 4 | Co2+ | 3d7, eg4, t2g3 |
(IV) | Mn(H2O)6]SO4 | +2 | 6 | Mn2+ | 3d5, t2g3, eg4 |
24. निम्नलिखित संकुलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुम्बकीय आघूर्ण भी बतलाइए –
K[Cr(H2O)2(C2O4)2].3H2O
[CrCl3(Py)3]
[Co(NH3)5Cl]Cl2
Cs[FeC4]
K4[Mn(CN)6]
उतर:
क्र. सं | संकर यौगिक का IUPAC नाम | ऑक्सीकरण अवस्था | उपसहसंयोजन संख्या | त्रिविम रसायन | केन्द्रीय धातु आयन | इलेक्ट्रॉनिक विन्यास | n का मान तथा चुम्बकीय आघूर्ण |
(i) | पोटेशियम डाई एक्वाऑक्सेलेटोक्रोमेट (III) हाइड्रेट | +3 | 6 | अष्टफलकीय | Cr3+ | 3d3, t2g3, eg0 | n=3, μ = 3.87 B.M. |
(ii) | पेंटा अमीन क्लोरिडो कोबाल्ट(III)क्लोराइड | +3 | 6 | अष्टफलकीय | Co3+ | 3d6, t2g6, eg2 | n=0, μ = 0 B.M. |
(iii) | ट्राइक्लोरिडो ट्राइपिइरीडीन क्रोमियम (III)
| +3 | 6 | अष्टफलकीय | Cr3+ | 3d3, t2g3, eg0 | n=3, μ = 3.87 B.M. |
(iv) | सीज़ियम टेट्राक्लोराइड फेरेट (III) | +3 | 4 | चतुष्फलकीय | Fe3+ | 3d5, t2g3, eg0 | n=5, μ = 5.92 B.M. |
(v) | पोटेशियम हेक्सा साइनो मैंगनेट (II) | +2 | 6 | अष्टफलकीय | Mn2+ | 3d5, t2g5, eg0 | n=1, μ = 1.73 B.M. |
25. उपसहसंयोजन यौगिक के विलयन में स्थायित्व से आप क्या समझते हैं? संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: विलयन में उपसहसंयोजन यौगिकों को स्थायित्व:
अधिकांश संकुल अत्यधिक स्थायी होते हैं। धातु आयन तथा लिगेण्ड के बीच अन्योन्यक्रिया को लुईस अम्ल-क्षार अभिक्रिया के समान माना जाता है। यदि अन्योन्यक्रिया प्रबल होगी तो बनने वाला संकुल ऊष्मागतिकीय रूप से अत्यधिक स्थायी होगा। विलयन में संकुल के स्थायित्व का अर्थ है–साम्य अवस्था पर भाग ले रही दो स्पीशीज के मध्य संगुणन की मात्रा का मान। संगुणन के लिए साम्य स्थिरांक (स्थायित्व या विरचन) को परिमाण गुणात्मक रूप से स्थायित्व को प्रकट करता है। इस प्रकार यदि हम निम्न प्रकार की अभिक्रिया को लें:
M + 4L [latex]\rightleftharpoons [/latex] ML K = [latex]\frac { [{ ML }_{ 4 }] }{ { [M][L] }^{ 4 } } [/latex]
साम्य स्थिरांक का मान जितना अधिक होगा, ML4 की विलयन में मात्रा उतनी ही अधिक होगी। विलयन में मुक्त धातु आयनों का अस्तित्व नगण्य होता है। अत: M सामान्यत: विलायक अणुओं से घिरा होगा जो लिगेण्ड अणुओं, L से प्रतिस्पर्धा करेंगे तथा धीरे-धीरे उनसे प्रतिस्थापित हो जाएँगे।
संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक संकुलों को स्थायित्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
I. केन्द्रीय आयन की प्रकृति पर:
(i) केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश:
सामान्यतया केन्द्रीय आयन पर आवेश घनत्व जितना अधिक होता है, उसके संकुलों का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, किसी आयन पर आवेश अधिक तथा आकार छोटा होने पर अर्थात् आयन का आवेश/त्रिज्या अनुपात अधिक होने पर इसके संकुलों का स्थायित्व अधिक होता है।
उदाहरणार्थ:
Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ आयन उच्च आवेश वहन करते हैं, परन्तु इनके आकार समान होते हैं। इसलिए Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ पर आवेश घनत्व उच्च होता है, इसलिए Fe3+ आयन के संकुल अधिक स्थायी होते हैं।
\[F{{e}^{3+}}+6C{{N}^{-}}\to {{[Fe{{(CN)}_{6}}]}^{3-}};K=1.2\times {{10}^{31}}\]
\[F{{e}^{2+}}+6C{{N}^{-}}\to {{[Fe{{(CN)}_{6}}]}^{4-}};K=1.8\times {{10}^{6}}\]
(ii) धातु आयन का आकार:
धातु आयन का आकार घटने पर संकुल का स्थायित्व बढ़ता है। यदि हम द्विसंयोजी धातु आयन पर विचार करें तो इनके संकुलों का स्थायित्व केन्द्रीय धातु आयन की आयनिक त्रिज्या घटने के साथ बढ़ता है।
आयन | Mn2+ | Fe2+ | Co2+ | Ni2+ | Cu2+ | Zn2+ |
आयनिक त्रिज्या (pm) | 91 | 83 | 82 | 78 | 69 | 64 |
इसलिए स्थायित्व का क्रम इस प्रकार है – Mn2+ < Fe2+ < Co2+ < Ni2+ < Cu2+ < Zn2+
(iii) धातु आयन की विद्युतऋणात्मकता या आवेश वितरण:
संकुल आयन का स्थायित्व धातु आयन पर इलेक्ट्रॉन आवेश वितरण से भी सम्बन्धित होता है। आरलेण्ड, चैट तथा डेविस के अनुसार धातु आयनों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
(क) वर्ग ‘a’ ग्राही:
ये पूर्णतया विद्युतधनात्मक धातुएँ होती हैं तथा इनमें वर्ग 1 तथा 2 की धातुएँ सम्मिलित होती हैं। इनके अतिरिक्त आन्तरसंक्रमण धातुएँ तथा संक्रमण श्रेणी के पूर्व सदस्य (वर्ग 3 से 6 तक), जिनमें अक्रिय गैस विन्यास से कुछ इलेक्ट्रॉन अधिक होते हैं, भी इस वर्ग में सम्मिलित होते हैं। ये N, O तथा F दाता परमाणुओं से युक्त लिगेण्डों के साथ अत्यधिक स्थायी उपसहसंयोजक सत्ता बनाते हैं।
(ख) वर्ग ‘b’ ग्राही:
ये बहुत कम विद्युतधनात्मक होते हैं। इनमें भारी धातुएँ; जैसे- Rh, Pd, Ag, Ir, Pt, Au, Hg, Pb आदि, जिनमें भरित d-कक्षक होते हैं, सम्मिलित होती हैं। ये उन लिगेण्डों के साथ स्थायी संकुल बनाती हैं जिनमें N, O तथा F वर्ग के भारी सदस्य दाता परमाणु होते हैं।
(iv) कीलेट प्रभाव:
स्थायित्व कीलेट वलयों के निर्माण पर भी निर्भर करता है। यदि L एक एकदन्तुक लिगेण्ड तथा L-L द्विदन्तुक लिगेण्ड हो तथा यदि L तथा L-L के दाता परमाणु एक ही तत्व के हों, तब L-L, L को प्रतिस्थापित कर देगा। कीलेशन के कारण यह स्थायित्व कीलेट प्रभाव कहलाता है। 5 तथा 6 सदस्यीय वलयों में कीलेट प्रभाव अधिकतम होता है। सामान्य रूप में वलय संकुल को अधिक स्थायित्व प्रदान करती है।
(v) वृहद्चक्रीय प्रभाव :
यदि एक बहुदन्तुक लिगेण्ड चक्रीय है तथा कोई अनुपयुक्त त्रिविम प्रभाव नहीं है तो बनने वाला संकुल बिना चक्रीय लिगेण्ड वाले सम्बन्धित संकुल की तुलना में अधिक स्थायी होगी। यह वृहद्चक्रीय प्रभाव कहलाता है।
II. लिगेण्ड की प्रकृति:
(i) क्षारीय सामर्थ्य:
लिगेण्ड जितना अधिक क्षारीय होगा, उतनी ही अधिक सरलता उसे अपने एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म को दान देने में होगी, इसलिए इससे बनने वाले संकुल उतने ही अधिक स्थायी होंगे। अत: CN– तथा F– आयन एवं NH3, जो प्रबल क्षार हैं, अच्छे लिगेण्ड हैं। तथा अनेक स्थायी संकुल बनाते हैं।
(ii) लिगेण्डों का आकार तथा आवेश:
ऋणायनी लिगेण्डों के लिए आवेश उच्च तथा आकार छोटा होने पर बनने वाला संकुल अधिक स्थायी होता है। अतः F– अधिक स्थायी संकुल देता है, परन्तु Cl– आयन नहीं।
26. कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: कीलेट प्रभाव:
जब कोई बहू दन्तुक लिगेण्ड दो या अधिक दाता परमाणुओं के द्वारा केन्द्रीय धातु आयन से अपने आप को इस प्रकार जोड़ता है कि केन्द्रीय आयन के साथ 5 या 6 सदस्यीय चक्र बनता है, तो यह प्रभाव कीलेट प्रभाव कहलाता है। कीलेट संकर यौगिक को स्थिरता प्रदान करते हैं।
जैसे: [PtCl2(en)2]
(image will be uploaded soon)
27. प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए: जैव प्रणालियाँ औषध रसायन विश्लेषणात्मक रसायन धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म। या जैविक निकायों में उपसहसंयोजक यौगिकों के महत्व का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर: 1. जैव प्रणालियाँ :
उपसहसंयोजन यौगिक जैव तन्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए उत्तरदायी वर्णक, क्लोरोफिल, मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक हैं। रक्त का लाल वर्णक हीमोग्लोबिन, जो कि ऑक्सीजन का वाहक है, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। विटामिन B12 सायनोकोबालऐमीन, प्रतिप्रणाली अरक्तता कारक कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। जैविक महत्त्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक; जैसे- कार्बोक्सी पेप्टिडेज़-A तथा कार्बोनिक एनहाइड्रेज (जैव प्रणाली के उत्प्रेरक) एन्जाइम हैं।
2. औषध रसायन:
औषधं रसायन में कीलेट चिकित्सा के उपयोग में अभिरुचि बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण है-पौधे/जीव-जन्तु निकायों में विषैले अनुपात में विद्यमान धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार। इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D-पेनिसिलऐमीन तथा डेसफेरीऑक्सिम B लिगेण्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजन यौगिक ट्यूमर वृद्धि को प्रभावी रूप से रोकते हैं।
उदाहरण: समपक्ष-प्लैटिन तथा सम्बन्धित यौगिक
3. विश्लेषणात्मक रसायन:
गुणात्मक तथा मात्रात्मक रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। अनेक परिचित रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों के साथ अनेक लिगेण्डों (विशेष रूप से कीलेट लिगेण्ड) की उपसहसंयोजन सत्ता बनने के कारण रंग उत्पन्न होता है, चिरसम्मत तथा यान्त्रिक विधियों द्वारा धातु आयनों की पहचान व उनके मात्रात्मक आकलन का आधार हैं।
अभिकर्मकों के उदाहरण: EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम), α- नाइट्रोसो- β- नैफ्थॉल आदि।
4. धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म:
धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में; जैसे- सिल्वर तथा गोल्ड के लिए, संकुल विरचन का उपयोग होता, है। उदाहरणार्थ-ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में गोल्ड, सायनाइड आयन से संयोजित होकर जलीय विलयन में उपसहसंयोजन सत्ता, [Au(CN)2]– बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् किया जा सकता है।
28. संकुल [Co(NH3)6]Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे? 6 4 3 2
उत्तर: 3. 3 आयन [Co(NH3)6]Cl2 → [Co(NH3)6]2+ + 2Cl–
29. निम्नलिखित आयनों में से किसके चुम्बकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा? [Cr(H2O)6]3+ [Fe(H2O)6]2+ [Zn(H2O)6]2+
उत्तर: ऑक्सीकरण अवस्था है Cr(III), Fe(II), Zn (II)
Cr3+ का इलेक्ट्रॉन विन्यास : 3d3, अयुग्मित इलेक्ट्रॉन = 3
Fe2+ का इलेक्ट्रॉन विन्यास = 3d6, अयुग्मित इलेक्ट्रॉन = 4
Zn2+ का इलेक्ट्रॉन विन्यास = 3d10, अयुग्मित इलेक्ट्रॉन = 0
[Fe(H2O)6]2+ का सबसे अधिक चुम्बकीय आघूर्ण है क्योंकि Cr3+ में 3 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि में Fe2+ में चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं तथा Zn2+ में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है।
$\mu =\sqrt{n(n+2)} \\$
$n=4 \\$
$\mu =\sqrt{4(4+2)} \\$
$\mu =\sqrt{24} \\$
$\mu =4.89B.M. \\$
30. K[Co(CO)4] में कोबाल्ट (Co) की ऑक्सीकरण संख्या है:
(a) +1
(b) +3
(c) -1
(d) -3
उत्तर:
$+1+x+4(0)=0 \\$
$x=-1 \\$
31. निम्नलिखित में सर्वाधिक स्थायी संकुल है:
[Fe(H2O)6]2+, [Fe(NH3)6]3+ , [Fe(C2O4)3]3- [FeCl6]3-
उत्तर: [Fe(C2O4)6]3- , (C2O4)2- एक कीलेटिंग लिगेण्ड है तथा संकर यौगिक को स्थिरता प्रदान करता है।)
32. निम्नलिखित के लिए दृश्य प्रकाश में अवशोषण की तरंगदैर्घ्य का सही क्रम क्या होगा? [Ni(NO2)6]4-, [Ni(NH3)6]2+, [Ni(H2O)6)2+
उत्तर: स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी में दिये गये संकर यौगिकों में उपस्थित लिगेण्ड्स का क्रम निम्न प्रकार है:
H2O < NH3 < NO2–
इसलिए अवशोषित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य का क्रम निम्न होगा:
[Ni(H2O)6]2+ < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(NO2)6]4-
चूंकि अवलोकित तरंगदैर्घ्य अवशोषित तरंगदैर्घ्य की पूरक होती हैं, इसलिए अवशोषित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य:
\[E=\frac{hc}{\lambda }\]
विपरीत क्रम में होगी अर्थात् [Ni(NO2)6]4- < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(H2O)6]2+
NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 Coordination Compounds in Hindi
Chapter-wise NCERT Solutions are provided everywhere on the internet with an aim to help the students to gain a comprehensive understanding. Class 12 Chemistry Chapter 9 solution Hindi medium is created by our in-house experts keeping the understanding ability of all types of candidates in mind. NCERT textbooks and solutions are built to give a strong foundation to every concept. These NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 in Hindi ensure a smooth understanding of all the concepts including the advanced concepts covered in the textbook.
NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 in Hindi medium PDF download are easily available on our official website (vedantu.com). Upon visiting the website, you have to register on the website with your phone number and email address. Then you will be able to download all the study materials of your preference in a click. You can also download the Class 12 Chemistry Coordination Compounds solution Hindi medium from Vedantu app as well by following the similar procedures, but you have to download the app from Google play store before doing that.
NCERT Solutions in Hindi medium have been created keeping those students in mind who are studying in a Hindi medium school. These NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Coordination Compounds in Hindi medium pdf download have innumerable benefits as these are created in simple and easy-to-understand language. The best feature of these solutions is a free download option. Students of Class 12 can download these solutions at any time as per their convenience for self-study purposes.
These solutions are nothing but a compilation of all the answers to the questions of the textbook exercises. The answers/solutions are given in a stepwise format and very well researched by the subject matter experts who have relevant experience in this field. Relevant diagrams, graphs, illustrations are provided along with the answers wherever required. In nutshell, NCERT Solutions for Class 12 Chemistry in Hindi come really handy in exam preparation and quick revision as well prior to the final examinations.