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NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 - In Hindi

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NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants in Hindi PDF Download

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Table of Content
1. NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants in Hindi PDF Download
2. Access NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 पुष्पी पादपों का शरीर
3. NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants in Hindi


Class:

NCERT Solutions for Class 11

Subject:

Class 11 Biology

Chapter Name:

Chapter 6 - Anatomy of Flowering Plants

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

Chapter Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



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Access NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 पुष्पी पादपों का शरीर

1. विभिन्न प्रकार के मेरिस्टम की स्थिति तथा कार्य बताइए।

उत्तर: विभिन्न प्रकार के मेरिस्टम की स्थिति तथा कार्य निम्नलिखित दिए गए हैं -

(i) शीर्षस्थ विभज्योतक : ये मुख्य रूप से जड़ व तने के शीर्षों पर तथा पत्तियों के अग्रों पर मिलते हैं, जहाँ ये नई-नई कोशिकाएँ बनाते रहते हैं।

(ii) अन्तर्वेशी विभज्योतक : यह शीर्षस्थ विभज्योतक का अलग होकर छूटा हुआ भाग होता है। जो स्थाई ऊतकों में परिवर्तित न होकर उनके मध्य में छूट जाता है। घासों के पर्यों के आधारों में, पुदीने के तने की पर्व संधियों के नीचे यह ऊतक पाया जाता है। इनकी कोशिकाओं में  विभाजन के फलस्वरूप पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है।

(iii) पार्श्व विभज्योतक : पौधों में इस ऊतक की स्थिति पार्श्व में होती है इसलिए इसे पार्श्व विभज्योतक कहते हैं। इनकी कोशिकाओं में विभाजन अरीय दिशा में होता है। इसके उदाहरण :पूलीय कैम्बियम व कॉर्क कैम्बियम हैं।

2. कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन करो।

उत्तर: हाँ। हम इस कथन से सहमत हैं कि कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। ये पार्श्व विभज्योतकों की कोशिकाओं के अरीय दिशा में विभाजन के फलस्वरूप बनता है।

3. चित्रों की सहायता से काष्ठीय एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का वर्णन कीजिए इसकी क्या सार्थकता है?

उत्तर: एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का निम्नलिखित वर्णन किया गया है - 

  • द्वितीयक वृद्धि - शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्तन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अत: शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्म आदि काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं। जाइलम और फ्लोएम के मध्य विभज्योतक को संवहन एधा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ  में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं।

द्वितीयक वृद्धि-द्विबीजपत्री तना- द्वितीयक वृद्धि संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) की क्रियाशीलता के कारण होती है।

(i) संवहन एधा की क्रियाशीलता - 

द्विबीजपत्री तने में संवहन बण्डल वर्षी (open) होते हैं।  संवहन बंडलों के जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य अंतः पूलीय एधा (interfascicular cambium) होती है। मज्जा रश्मियों की मृदूतकीय कोशिकाएँ जो अंतः:पूलीय एधा के मध्य स्थित होती हैं, विभज्योतकी होकर अंतर पूलीय एधा (interfascicular cambium) बनाती हैं। पूलीय तथा अंतर पूलीय एधा मिलकर संवहन एधा का घेरा बनाती हैं।

(ii) संवहन एधा वलय (vascular cambium ring) - की कोशिकाएँ तने की परिधि के समान्तर तल अर्थात स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में ही विभाजित होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका के विभाजन से जो नई कोशिकाएँ बनती हैं उनमें से केवल एक जाइलम या फ्लोएम की कोशिका में रूपांतरित हो जाती है, जबकि दूसरी कोशिका विभाजन सील (meristematic) बनी रहती है। परिधि की ओर बनने वाली कोशिकाएँ फ्लोएम के तत्वों में तथा केन्द्र की ओर बनने वाली कोशिकाएँ जाइलम के तत्वों में परिवर्द्धित हो जाती हैं। बाद में बनने वाला संवहन ऊतक क्रमशः द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) कहलाता है। ये संरचना तथा कार्य में प्राथमिक जाइलम तथा फ्लोएम के समान होते हैं।

(iii) कॉर्क एधा की क्रियाशीलता -

संवहन एधा की क्रियाशीलता से बने द्वितीयक ऊतक पुराने ऊतकों पर दबाव डालते हैं जिसके कारण भीतरी (केन्द्र की ओर उपस्थित) प्राथमिक जाइलम अन्दर की ओर दब जाता है। इसके साथ ही परिधि की ओर स्थित प्राथमिक फ्लोएम नष्ट हो जाता है। इससे पहले कि बाह्य त्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ एक निश्चित सीमा तक खींचने के बाद टूट-फूट जाए, अधस्त्वचा (hypodermis) के अंदर की कुछ मृदूतकीय कोशिकाएँ विभज्योतक (meristem) होकर कॉर्क एधा (cork cambium) बनाती हैं। कॉर्क एधा कभी-कभी वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ (pericycle) आदि से बनती है। कॉर्क एधा तने की परिधि के समानांतर विभाजित होकर बाहर की ओर सुबेरिन युक्त (suberized) कॉर्क या फिलम (cork or phellem) का निर्माण करती है। यह तने के अन्दर के भीतरी ऊतकों की सुरक्षा करती है। कॉर्क एधा से केंद्र की ओर बनने वाली मृदूतकीय (parenchymatous), स्थूलकोण अथवा दृढ़ोतक कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट (phelloderm) का निर्माण करती हैं। कॉर्क एधा से बने फेलम तथा फेलोडर्म को पेरीडर्म (periderm) कहते हैं। पेरीडर्म में स्थान-स्थान पर गैस विनिमय के लिए वातरन्ध्र (lenticels) बन जाते हैं। द्वितीयक जाइलम वसन्त काष्ठ तथा शरद् काष्ठ में भिन्नत होता है। इसके फलस्वरूप कुछ पौधों में स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं।

Stages of secondary growth in a woody stem

4. निम्नलिखित में विभेद कीजिए

(अ) ट्रेकीड तथा वाहिका ।

उत्तर: 

क्र० सं०

वाहिनिकाएँ (Tracheids)

वाहिकाएं (Vessels)

1.

ये लम्बी, लिग्निन युक्त (lignified), अपेक्षाकृत सँकरी कोशिकाएँ होती हैं। दोनों सिरों पर सँकरी तथा नुकीली (pointed) होती हैं।

ये लम्बी, लिग्निन युक्त, अपेक्षाकृत चौड़ी कोशिकाएँ होती हैं। कोशिकाओं के चौड़े सिरे पूर्णतः या आंशिक रूप से जुड़े होने से ये नलिकाकार रचना बनाती हैं।

2.

ये कोशिकाएँ सिरों से सिरों पर अन्य वाहिनिकाओं के साथ चिपकी रहती हैं।

अनेक कोशिकाएँ सिरों पर जुड़कर एक सतत संरचना का निर्माण कर, लेती हैं। कोशिकाएँ अलग-अलग नहीं की जा सकती हैं।

3.

दो वाहिनिकाओं के संधि तल पर गर्तमय (pitted) भित्तियाँ होती हैं। गर्गों से ही जल इत्यादि का संवहन होता है।

वाहिकाओं के मध्य अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं। अतः संवहन एक सिरे से दूसरे सिरे तक बिना किसी अवरोध के होता है।

4.

संघ ट्रेकियोफाइटा के सभी सदस्यों में पाई जाती हैं।

ये केवल आवृतबीजी पौधों (angiosperms) में पाई जाती हैं।


(ब) पैरेन्काइमा (मृदूतक) तथा कोलेन्काइमा (स्थूलकोण ऊतक) ।

उत्तर: 

क्र० सं०

मृदूतक (Parenchyma)

स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma)

1.

यह एक सरल, स्थायी तथा जीवित कोशिकाओं से बना ऊतक है।

यह भी सरल, स्थायी तथा जीवित कोशिकाओं से बना ऊतक है।

2.

कोशिकाओं की कोशिका भित्ति सेलुलोस से बनी होती है। जीवद्रव्य में प्रायः एक केंद्रीय रिक्तिका (central vacuole) होती है।

कोशिकाओं की भित्ति सेलुलोस (cellulose) की बनी होती है। कोशिकाओं के कोनों पर अतिरिक्त सेलुलोस एकत्र हो जाने के कारण कोने स्थूलित हो जाते हैं। केंद्रीय रिक्तिका होती है।

3.

कोशिकाएँ समव्यासी (isodiametric) तथा विभिन्न आकारों की होती हैं। इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान पाए जाते हैं।

कोशिकाएँ समव्यासी एवं कोणीय होती हैं। अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं होते हैं।

4.

कार्यिकी स्वरूप में सक्रिय होती हैं। विभिन्न प्रकार का कार्य करने के लिए अलग-अलग आकार में रूपांतरित  होती हैं।

कार्यिकी स्वरूप में प्रारम्भ में सक्रिय होती हैं और लचीली यांत्रिक शक्ति प्रदान करती हैं।

5.

भरण ऊतक के रूप में पौधे के सभी अंगों तथा स्थानों में पाई जाती हैं।

सामान्यतः द्विबीजपत्री तने की अधस्त्वचा (hypodermis) बनाती हैं।


(स) रसदारु तथा अन्तः काष्ठ |

उत्तर:

क्र० सं०

रस काष्ठ (Sapwood)

अन्तः काष्ठ (Heartwood)

1.

द्वितीयक जाइलम का परिधि की ओर स्थित हल्के रंग का भाग रस काष्ठ कहलाता है।

द्वितीयक जाइलम के केन्द्र की ओर स्थित गहरे रंग का भाग अन्तः काष्ठ या दृढ़ काष्ठ कहलाता है।

2.

रस काष्ठ की वाहिकाओं में रेजिन, टैनिन, तेल, गोंद आदि का संचय नहीं होता। टाइलोसिस नहीं बनते।

अन्तः काष्ठ की वाहिकाओं में टैनिन, रेजिन, तेल, गोंद एकत्र हो जाता है। वाहिकाओं में टाइलोसिस (tyloses) बन जाते हैं।

3.

रस काष्ठ की वाहिकाओं की गुफा अवरुद्ध नहीं होती। ये जल एवं खनिज पदार्थों का संवहन करती हैं।

अन्तः काष्ठ की वाहिकाओं का मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण ये जल तथा खनिज लवणों का संवहन नहीं करती। यह पौधे को यांत्रिक आधार प्रदान करता है।


(द) खुले तथा बंद संवहन बण्डल ।

उत्तर: 

क्र० सं०

खुला संवहन बण्डल (Open Vascular Bundle)

बंद संवहन बण्डल (Closed Vascular Bundle)

1.

संवहन बण्डल के जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य - एघा (कैम्बियम) कोशिकाओं की पट्टी पाई जाती है।

संवहन बण्डल के जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य एधा (cambium) का अभाव होता है।

2.

संवहन बण्डल संयुक्त, बहिः फ्लोएमी या उभय-फ्लोएमी होते हैं।

संवहन बण्डल संयुक्त, बहिः फ्लोएमी होते हैं।

3.

ये द्विबीजपत्री तनों में पाए जाते हैं।

ये एकबीजपत्री तनों में पाए जाते हैं।


5. निम्नलिखित में शरीर के आधार पर अंतर कीजिए:- 

(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल ।

उत्तर: 

क्र० सं०

ऊतक (Tissue)

एकबीजपत्री मूल (Monocot Root)

द्विबीजपत्री मूल (Dicot Root)

1.

कॉर्टेक्स

स्तर कम मोटा होता है।

अपेक्षाकृत अधिक मोटा स्तर होता है।

2.

अंतस्त्वचा

कोशिकाएँ स्थूलित भित्तियों वाली होती हैं, इसलिए मार्ग कोशिकाएँ अधिक स्पष्ट होती हैं।

प्रायः भित्तियाँ पतली होती हैं, केवल अरीय भित्तियों पर कैस्पेरियन पट्टियाँ होती हैं। अतः मार्ग कोशिकाएँ अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट नहीं होती हैं।

3.

परिरम्भ

पार्श्व मूल बनाती है।

पार्श्व मूल बनाने के अतिरिक्त एधा तथा कॉर्क एधा बनाने में सहायता करती हैं।

4.

संवहन बण्डल

  • प्रायः 6 से अधिक होते हैं।

  • जाइलम वाहिकाएँ गोलाकार या अण्डाकार तथा बड़ी गुफा वाली होती हैं।

  • एधा नहीं बनती है।

  • प्रायः 2 से 6 तक होते हैं।

  • जाइलम वाहिकाएँ बहुभुजी तथा अपेक्षाकृत छोटी गुहा वाली होती हैं।

  • द्वितीयक वृद्धि के समय एधा बनती है।

5.

मज्जा

सुविकसित।

अल्पविकसित अथवा अनुपस्थित।


(ब) एकबीजपत्री तना तथा द्विबीजपत्री तना।

उत्तर: 

क्र० सं०

ऊतक (Tissue)

एकबीजपत्री तना (Monocot Stem)

द्विबीजपत्री तना (Dicot Stem)

1.

बाह्यत्वचा

अधिकतर रोमरहित होती है।

प्रायः रोमयुक्त होती है।

2.

अधस्त्वचा

दृढ़ोतक (sclerenchyma) से बनी होती है।

स्थूलकोण ऊतक (collen- chyma) से बनी होती है।

3.

वल्कुट

विभेदित नहीं होता है।

मृदूतक का बना होता है।

4.

अंतस्त्वचा

अनुपस्थित होती है।

सामान्यतया स्पष्ट होती है।

5.

परिरम्भ

सामान्य रूप से अनुपस्थित होती है।

दृढ़ोतक और मृदूतक की बनी होती है।

6.

संवहन बण्डल

(अ) बंडल आच्छद

(ब) जाइलम

(स) फ्लोएम

(i) भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।

(ii) सदैव अवर्धी होते हैं।

(iii) प्रत्येक पूल के चारों ओर दृढ़ोतकी बण्डल आच्छदहोता है।

(iv) वाहिकाएँ 'V' या 'Y' आकार में विन्यसित होती हैं।

(v) 'V' आकार के जाइलम के मध्य स्थित।

(vi) फ्लोएम में मृदूतक का अभाव होता है।

(i) ये अधिक चक्रों में विन्यसित होते हैं।

(ii) सदैव वर्धी होते हैं।

(iii) अभाव होता है।

(iv) वाहिकाएं अरीय पंक्तियों में विन्यसित होती हैं।

(v) जाइलम के बाहर अथवा दोनों ओर होता है।

(vi) फ्लोएम में मृदूतक होता है।

7.

मज्जा रश्मि

नहीं होती हैं।

मृदूतक से बनी होती हैं।

8.

मज्जा

स्पष्ट नहीं होता, फिर भी केंद्र में कभी-कभी कोशिकाएँ विघटित होकर मज्जा गुहा बनाती हैं।

स्पष्ट होता है, कभी-कभी कोशिकाएँ विघटित होकर मज्जा गुहा बनाती हैं।

9.

द्वितीयक वृद्धि

द्वितीयक वृद्धि नहीं होती है।

सामान्यतया द्वितीयक वृद्धि होती है।


6. आप एक शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन कीजिए। आप कैसे पता करेंगे कि यह एकबीजपत्री तना है अथवा द्विबीजपत्री तना है? इसके कारण बताइए।

उत्तर: शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी अवलोकन करके निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री तने की पहचान करते हैं -

(क) तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण -

  1. बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle), रंध्र (stomata) तथा बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।

  2. अधस्त्वचा (hypodermis) उपस्थित होती है।

  3. अंतस्त्वचा प्रायः अनुपस्थित या अल्पविकसित होती है।

  4. परिरम्भ (pericycle) प्रायः बहुस्तरीय होता है।

  5. संवहन बण्डल संयुक्त (conjoint), बहि:फ्लोएमी (collateral) या उभय फ्लोएमी (bicollateral) होते हैं।

  6. प्रोटोजाइलम एण्डार्क (endarch) होता है।

(ख) एकबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण -

  1. बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम अनुपस्थित होते हैं।

  2. अधस्त्वचा दृढ़ोतक (sclerenchymatous) होती है।

  3. भरण ऊतक (ground tissue) वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ तथा मज्जा में अविभेदित होता है।

  4. संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।

  5. संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी तथा अवर्थी (closed) होते हैं।

  6. संवहन बण्डल चारों ओर से दृढ़ोतक से बनी बंडल आच्छद से घिरे होते हैं।

  7. जाइलम वाहिकाएँ (vessels) ‘V’ या ‘Y’ क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।

(ग) द्विबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण -

  1. बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।

  2. अधस्त्वचा (hypodermis) स्थूलकोण ऊतक से बनी होती है।

  3.  संवहन बण्डल एक या दो घेरों में व्यवस्थित होते हैं।

  4.  भरण ऊतक वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा तथा मज्जा रश्मियों में विभेदित होता है।

  5.  संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी या उभय फ्लोएमी और वर्धा (open) होते हैं।

  6. जाइलम वाहिकाएँ रेखीय (linear) क्रम में व्यवस्थित होती हैं।

 7. सूक्ष्मदर्शी, किसी पौधे के भाग की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित शरीर रचनाएँ दिखाती है

(अ) संवहन बण्डल संयुक्त, फैले हुए तथा उसके चारों ओर स्क्लेरेन्काइमा आच्छद हैं।

(ब) फ्लोएम पैरेन्काइमा नहीं है।

आप कैसे पहचानेंगे कि यह किसका है?

उत्तर: एकबीजपत्री तने की आन्तरिक आकारिकी या शरीर में संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। संवहन बण्डल संयुक्त तथा अवर्थी होते हैं। संवहन बण्डल के चारों ओर स्क्लेरेन्काइमा बंडल आच्छद (bundle sheath) होती है। फ्लोएम में फ्लोएम मृदूतक का अभाव होता है। अत: सूक्ष्मदर्शी में प्रदर्शित पौधे का भाग एकबीजपत्री तना है।

8. जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक क्यों कहते हैं?

उत्तर: जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक इसलिए कहते हैं क्योंकि ये एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। सभी कोशिकाएँ मिलकर एक इकाई के रूप में विभाजित होकर कार्य करती हैं।

9. रंध्री तंत्र क्या है? रन्ध्र की रचना का वर्णन करो और इसका नामांकित चित्र भी बनाइए।

उत्तर: रंध्र (Stomata) ऐसी रचनाएँ हैं, जो पत्तियों की बाह्य त्वचा पर पाये जाते हैं। रंध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के विनिमय को नियमित करते हैं। प्रत्येक रंध्र (stoma= एकवचन) में सेम के आकार की दो कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। एकबीजपत्री पौधों में द्वार कोशिकाएँ डम्बलाकार होती हैं। द्वार कोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। द्वार कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है और यह रंध्र के खुलने तथा बंद होने के क्रम को नियमित करता है। कभी-कभी कुछ बाह्य त्वचीय कोशिकाएँ भी रंध्र के साथ लगी रहती हैं, इन्हें उप कोशिकाएँ (accessory cells) कहते हैं। रन्ध्रीय छिद्र, द्वार कोशिका तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रंध्री तंत्र (stomatal system) का निर्माण करती हैं।

Diagrammatic representation of stoma system

10. पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र बताओ। प्रत्येक तंत्र के ऊतक बताओ।

उत्तर: पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र निम्नवत् हैं:-

  1. बाह्य त्वचीय ऊतक तंत्र-मृदूतक।

  2. भरण ऊतक तंत्र-पैरेन्काइमा, कोलेनकाइमा तथा स्क्लेरेनकाइमा।

  3. संवहन ऊतक तंत्र-जाइलम तथा फ्लोएम।

11. पादप शरीर का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी है?

उत्तर: फार्माकोस (Pharmacognosy) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत औषधीय महत्व के पदार्थों के स्रोत, विशेषताओं और उनके उपयोग का अध्ययन प्राकृतिक अवस्था में किया जाता है। यह अध्ययन मुख्य रूप से पौधों के शरीर (anatomy) पर निर्भर करता है। इमारती लकड़ी (timber) की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है, इसलिए अच्छी इमारती लकड़ी के स्थान पर खराब इमारती लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है। शरीर अध्ययन द्वारा लकड़ी की किस्म (quality) का पता लगाया जा सकता है। शरीर अध्ययन द्वारा एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री तने और जड़ की पहचान की जा सकती है। जीवाश्म शरीर (fossil anatomy) अध्ययन द्वारा प्राचीन कालीन पौधों का ज्ञान होता है। इससे जैव विकास का ज्ञान होता है कि आधुनिक पौधों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है। सूक्ष्मदर्शी अध्ययन द्वारा चाय, कॉफी, तम्बाकू, केसर, हींग, वनस्पति रंगों, पादप औषधियों में मिलावट (adulteration) का अध्ययन किया जा सकता है। मिलावट के कारण इनकी आन्तरिक संरचना में भिन्नता आ जाती है।

12. परिचर्म क्या है? द्विबीजपत्री तने में परिचर्म कैसे बनता है?

उत्तर: परिचर्म (Periderm) : कॉर्क एधा की जीवित मृदूतक कोशिका से परिचर्म का निर्माण होता है। कॉर्क एधा या कागजन (cork cambium or phellogen) की कोशिकाएँ विभाजित होकर परिधि की ओर जो कोशिकाएँ बनती हैं, वे सुबेरिन युक्त (suberized) कोशिकाएँ होती हैं। सुबेरिन युक्त कोशिकाओं से बना यह स्तर कॉर्क या फिलम (cork or phellem) कहलाता है। कॉर्क एधा (cork cambium) से भीतर की ओर बनने वाली मृदूतकीय कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट या फेलोडर्म (phelloderm) बनाती हैं। फेलम (कॉर्क), कॉर्क एधा तथा द्वितीयक वल्कुट मिलकर परिचर्म (periderm) बनाती हैं।

13. पृष्ठाधर पत्ती की भीतरी रचना का वर्णन चिह्नित चित्रों की सहायता से कीजिए।

उत्तर: पृष्ठाधर या द्विबीजपत्री पत्ती की संरचना द्विबीजपत्री पौधों की पत्ती की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देते हैं - 

(क) बाह्यत्वचा (Epidermis) :

बाह्यत्वचा सामान्यत: दोनों सतहों पर एक कोशिकीय मोटे स्तर के रूप में होती है।

(i) ऊपरी बाह्यत्वचा :

यह एक कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ ढोलकनुमा परस्पर एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं। इन कोशिकाओं की बाहरी भित्ति उपचर्म-युक्त होती है। कोशिकाओं में साधारणत: हरित लवक नहीं होते हैं। कुछ पौधों (प्रायः शुष्क स्थानों में उगने वाले पौधों में) में बहुस्तरीय बाह्यत्वचा (multiple epidermis) पाई जाती हैं।

(ii) निचली बाह्यत्वचा :

निचली बाह्यत्वचा एक कोशिका मोटे स्तर रूप में पाई जाती है। इस पर पतला उपचर्म होता है। रन्ध्र बहुतायत में पाए जाते हैं। रन्ध्रों की रक्षक कोशिकाओं में हरित लवक पाए जाते हैं। कुछ पत्तियों की ऊपरी बाह्यत्वचा पर भी रंध्र होते हैं, किन्तु इनकी संख्या सदैव कम होती है।

(ख) पर्णमध्योतक (Mesophyll) :

दोनों बाह्यत्वचाओं के मध्य स्थित सम्पूर्ण ऊतक (संवहन बंडलों को छोड़कर) पर्णमध्योतक कहलाता है। पृष्ठाधर पत्तियों में पर्णमध्योतक दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है

(i) खम्भ ऊतक (Palisade tissue) :

ऊपरी बाह्यत्वचा के नीचे लम्बी, खम्भाकार कोशिकाएँ दो-तीन पर्यों में लगी होती हैं। इन कोशिकाओं के मध्य अंतर कोशिकीय स्थान बहुत कम या नहीं होते हैं। ये रूपान्तरित मृदूतकीय कोशिकाएँ होती हैं। यह प्रकाश संश्लेषी (photosynthetic) ऊतक है।


TS of Dorsiventral Leaf


(ii) स्पंजी ऊतक (Spongy tissue):

खम्भ मृदूतक से लेकर निचली बाह्यत्वचा तक स्पंजी मृदूतक ही होता है। ये कोशिकाएँ सामान्यतः गोल और ढीली व्यवस्था में अर्थात् काफी और स्पष्ट अन्तराकोशिकीय स्थान वाली होती हैं। इन कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट्स कम संख्या में होते हैं। मध्य शिरा में संवहन पूल के ऊपर तथा नीचे दृढ़ोतक या स्थूलकोण ऊतक पाया जाता है।

(ग) संवहन पूल (Vascular bundles) :

पत्ती की अनुप्रस्थ काट में अनेक छोटी-छोटी शिराएँ संवहन पूलों के रूप में दिखाई पड़ती हैं। संवहन पूल जाइलम और फ्लोएम के मिलने से बनता है। आदि दारु (protoxylem) सदैव ऊपरी बाह्यत्वचा की ओर होती है, जबकि अनु दारु (metaxylem) निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। फ्लोएम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। जाइलम और फ्लोएम के मध्य एधा (cambium) होती है। इस प्रकार संवहन पूल संयुक्त (conjoint), समपार्श्व (collateral) तथा वध (open) होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल दृढ़ोतक रेशों से घिरा होता है तथा इसके बाहर मृदूतकीय कोशिकाओं का पूलीय आच्छद होता है। यह बंडल आच्छद सामान्यत: छोटी-से-छोटी शिरा के चारों ओर भी होता है।

14. त्वक् कोशिकाओं की रचना तथा स्थिति उन्हें किस प्रकार विशिष्ट कार्य करने में सहायता करती है?

उत्तर: त्वक कोशिकाएँ - ये पादप शरीर के सभी भागों पर सबसे बाहरी रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। यह प्रायः एक कोशिका मोटा स्तर होता है। कोशिकाएँ अनुप्रस्थ काट में ढोलक नुमा (barrel shaped) दिखाई देते हैं। बाहर से देखने पर ये अनियमित आकार की फर्श के टाइल्स की तरह अथवा बहुभुजीय दिखाई देती हैं। ये परस्पर एक-दूसरे से मिलकर अखण्ड सतह बनाती हैं। ये कोशिकाएँ मृदूतकीय कोशिकाओं का रूपान्तरण होती हैं। इन कोशिकाओं में कोशिका द्रव्य की मात्रा बहुत कम होती है तथा प्रत्येक कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका होती है। पौधे के वायवीय भागों की त्वक् कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) से ढकी होती हैं, परन्तु मूलीय त्वचा की कोशिकाओं पर उपचर्म की सुरक्षात्मक आवरण नहीं होता। तने, पत्ती आदि की त्वक् कोशिकाओं के मध्य रंध्र (stomata) पाए जाते हैं। 

रन्ध्र द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरे होते हैं। द्वार कोशिकाएँ वृक्काकार होती हैं। द्वार कोशिकाओं के चारों ओर पाई जाने वाली कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएँ कहते हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर करता है। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के आदान प्रदान का कार्य करते हैं। रन्ध्रों की स्थिति, संख्या, संरचना, उपचर्म की मोटाई आदि वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है।

जड़ों की त्वक कोशिकाओं से एककोशिकीय मूलरोम बनते हैं। ये मृदा से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। तने और पत्तियों की तवक्को शिकाओं से बहुकोशिकीय रोम बनते हैं। पत्ती एवं तने की रोमयुक्त सतह वाष्पोत्सर्जन की दर को नियंत्रित करने में सहायक होती है। रन्ध्रों के रोमों से ढके रहने के कारण मरुभिद पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। त्वक् कोशिकाएँ वातावरणीय दुष्प्रभावों से पौधों की सुरक्षा करती हैं।

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