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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 - In Hindi

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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation in Hindi Mediem

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NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT Textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Biology

Chapter Name:

Chapter 15 - Biodiversity And Conservation

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes.

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Access NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 – जैव - विविधता एवं संरक्षण

1. जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों (कंपोनेंट) के नाम लिखिए।

उत्तर: जैव विविधता के तीन आवश्यक घटक निम्नवत् हैं –

1. आनुवंशिक विविधता

2. जातीय विविधता

3. पारिस्थितिकिय विविधता प्रश्न।


2. पारिस्थितिकी विद किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आकलन करते हैं?

उत्तर: पृथ्वी पर जातीय विविधता समान रूप से वितरित नहीं है, बल्कि एक रोचक प्रतिरूप दर्शाती है। पारिस्थितिकी विद विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं। जैव विविधता साधारणतया, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में सबसे अधिक तथा ध्रुवों की तरफ घटती जाती है। उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में जातीय समृद्धि के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं - उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों (Tropical regions) में जैव जातियों को विकास के लिए अधिक समय मिला तथा इस क्षेत्र को अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई जिससे उत्पादकता अधिक होती है। जातीय समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती है। पारिस्थितिकी विद प्रजाति की उष्ण एवं शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में मिलने की प्रवृत्ति, अधिकता आदि की अन्य प्राणियों एवं पौधों से तुलना कर उसके अनुपात की गणना और आकलन करते हैं।


3. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति- समृद्धि क्यों मिलती है ? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए।

उत्तर: इस प्रकार की परिकल्पनायें निम्नवत् हैं –

1. जाति उद्भवन (speciation) आमतौर पर समय का कार्य है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद (glaciation) होता रहा है जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र लाखों वर्षों से
अबाधित रहा है। इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए लम्बा समय मिला है।

2. उष्णकटिबंधीय पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण (temperate environment) से भिन्न तथा कम मौसमीय परिवर्तन दर्शाता है। यह स्थिर पर्यावरण निकेत (niches) विशिष्टीकरण को
प्रोत्साहित करता रहा है जिसकी वजह से अधिकाधिक जाति विविधता उत्पन्न हुई है।

3. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता उत्पन्न हुई है।


4. जातीय-क्षेत्र संबंध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्व है?

उत्तर: जातीय- क्षेत्र संबंध (Species- area relationship) – जर्मनी के महान प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में गहन खोज के बाद जाति समृद्धि तथा क्षेत्र के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया। उनके अनुसार कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध आयताकार अतिपरवलय (rectangular hyperbola) होता है। यह लघुगणक पैमाने पर एक सीधी रेखा दर्शाता है। इस सम्बन्ध को निम्नलिखित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
log S = log C + Z log A
जहाँ; S = जाति समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएंट)

C = Y – अन्त:खण्ड (इंटरसेप्ट)


Ethnic-region relations


पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है। यह वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है। आश्चर्यजनक रूप से समाश्रयण रेखा (regression line) की ढलान एक जैसी होती है। यदि हम किसी बड़े समूह के जातीय क्षेत्र संबंध जैसे- सम्पूर्ण महाद्वीप का विश्लेषण करते हैं, तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी होती है। Z के माने की परास (range) 0.6 से 1.2 होती है।


5. किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?

उत्तर: जाति क्षति के कारण (Causes of Species Loss) – विभिन्न समुदायों में जीवों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। जब तक किसी पारितंत्र में मौलिक जाति उपस्थित रहती है तब तक प्रजाति के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती रहती है। मौलिक जाति के विलुप्त होने पर इसके जीन पूल में उपस्थित महत्त्वपूर्ण लक्षण विलुप्त हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानव हस्तक्षेप के कारण संपूर्ण विश्व जाति क्षति की बढ़ती हुई दर का सामना कर रहा है। जाति क्षति के मुख्य कारण निम्नवत् हैं –

(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन (Habitat Loss and Fragmentation) – मानवीय हस्तक्षेप के कारण जीवों के प्राकृतिक आवासों का नाश हुआ है। जिसके कारण जातियों का विनाश गत 150 वर्षों में अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है। मानव हितों के कारण औद्योगिक क्षेत्रों, कृषि क्षेत्रों, आवासीय क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि हो रही है जिससे वनों का क्षेत्रफल 18% से घटकर लगभग 9% रह गया है। आवासीय क्षति जन्तु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है।

विशाल अमेजन वर्षा वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काट कर साफ कर दिया गया है। इसमें निवास करने वाली करोड़ों जातियाँ प्रभावित हुई हैं और उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है। आवासीय क्षति के अतिरिक्त प्रदूषण भी जातियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। मानव क्रियाकलाप भी जातीय आवासों को प्रभावित करते हैं। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खंडों में विभक्त कर दिया जाता है, तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए वह बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि में कमी होती है।


(ii) अतिदोहन (Overexploitation) – मानव हमेशा से भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, परंतु लालच के वशीभूत होकर मानव प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण बहुत-सी जातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतिदोहन के कारण गत 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गए हैं। अनेक समुद्री मछलियों की प्रजातियाँ शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्व की अनेक जातियाँ खतरे में हैं।


(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien Species Invasions) – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास (पार्थेनियम) लैंटाना और हायसिंथ ( आइकोर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरी पाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश) जातियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।


(iv) सहविलुप्तता (Co-extinctions) – एक जाति के विलुप्त होने से उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। उदाहरण के लिए– एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उसके विशिष्ट परजीवी भी विलुप्त होने लगते हैं।


(v) स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि (Shifting or Jhum Cultivation) – जंगलों में रहने वाली जनजातियां विभिन्न जंतुओं का शिकार करके भोजन प्राप्त करती हैं। उनका कोई निश्चित
आवास नहीं होता। ये जीवन यापन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित होती रहती हैं। ये जंगल की भूमि पर खेती करते हैं, इसके लिए ये जनजातियाँ प्राय: जंगल के पेड़-पौधों, घास फूस को जलाकर नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इसके कारण वन्य प्रजातियाँ स्थानाभाव के कारण प्रभावित होती हैं।


6. पारितंत्र के कार्यों के लिए जैव विविधता कैसे उपयोगी है?

उत्तर: जैव विविधता की पारितंत्र के कार्यों के लिए उपयोगिता (Utility of Biodiversity for Ecosystem Functioning) – अनेक दशकों तक पारिस्थितिकविदों का विश्वास था कि जिस समुदाय में अधिक जातियाँ होती हैं वह पारितंत्र कम जाति वाले समुदाय से अधिक स्थिर रहता है। डेविड टिलमैन (David Tilman) ने प्रयोगशाला के बाहर के भूखण्डों पर लम्बे समय तक पारितंत्र के प्रयोग के बाद पाया कि उन भूखण्डों में जिन पर अधिक जातियाँ थीं, साल दर साल कुल जैव भार में कम विभिन्नता दर्शाई। उन्होंने अपने प्रयोगों में यह भी दर्शाया कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है।हम यह महसूस करते हैं कि समृद्ध जैव विविधता अच्छे पारितंत्र के लिए जितनी आवश्यक है, उतनी ही मानव को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है। 

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता की अनेक पारितंत्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है। तीव्र गति से नष्ट हो रही अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग 20 प्रतिशत ऑक्सीजन, प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है। पारितंत्र की दूसरी सेवा परागण कोरिया; जैसे- मधुमक्खी, गुंजन मक्षिका पक्षी तथा चमगादड़ द्वारा की जाने वाली परागण क्रिया है जिसके बिना पौधों पर फल तथा बीज नहीं बन सकते। हम प्रकृति से अन्य अप्रत्यक्ष सौन्दर्यात्मक लाभ उठाते हैं। पारितंत्र पर्यावरण को शुद्ध बनाता है। सूखा तथा बाढ़ आदि को नियंत्रित करने में हमारी मदद करता है।


7. पवित्र उपवन क्या हैं ? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?

उत्तर: अलौकिक ग्रूव्स या पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाये जाने वाले वनखण्ड हैं। ये जातीय समुदायों/राज्य या केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं। पवित्र उपवनों से विभिन्न प्रकार के वन्य जंतुओं और वनस्पतियों को संरक्षण प्राप्त होता है क्योंकि इनके आस-पास हानिकारक मानव गतिविधियाँ बहुत कम होती हैं। इस प्रकार ये वन्य जीव संरक्षण में धनात्मक योगदान प्रदान करते हैं।


8. पारितंत्र सेवा के अंतर्गत बाढ़ व भू- अपरदन (सोइल इरोजन) नियंत्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितंत्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कॉम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?

उत्तर: पारितंत्र को संरक्षित कर बाढ़, सूखा व भू-अपरदन (soil erosion) जैसी समस्याओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। वृक्षों की जड़ें मृदा कणों को जकड़े रखती हैं, जिससे जल तथा वायु प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होते हैं। वृक्षों के कटाव से यह अवरोध समाप्त हो जाता है। मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत तीव्र वायु या वर्षा के जल के साथ बहकर नष्ट हो जाती है। इसे मृदा अपरदन कहते हैं। पहाड़ों में जल ग्रहण क्षेत्रों के वृक्षों को काटने से मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है और यह अधिक गंभीर रूप धारण कर लेती है। बाढ़ के समय नदियों का पानी किनारों से तेज गति से टकराता है और इन्हें काटता रहता है। इसके फलस्वरूप नदी का प्रवाह सामान्य दिशा के अतिरिक्त अन्य दिशाओं में भी होने लगता है। वृक्षारोपण, बाढ़ नियंत्रण तथा मृदा अपरदन को रोकने का प्रमुख उपाय है। वृक्ष मरुस्थलों में वातीय अपरदन (wind erosion) को रोकने में उपयोगी होते हैं। वृक्ष वायु गति की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं जिससे अपरदन की दर कम हो जाती है।


9. पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत), जन्तुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है। क्या कारण है कि जंतुओं में अधिक विविधता मिलती है?

उत्तर: प्राणियों में अनुकूलन की क्षमता पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। प्राणियों में प्रचलन का गुण पाया जाता है, इसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियाँ होने पर ये स्थान परिवर्तन करके स्वयं को बचाए रखते हैं। इसके विपरीत पौधे स्थिर होते हैं, उन्हें विपरीत स्थितियों का अधिक सामना करना ही पड़ता है। प्राणियों में तंत्रिका तंत्र तथा अंत:स्रावी तंत्र पाया जाता है। इसके फलस्वरूप प्राणी वातावरण से संवेदनाओं को ग्रहण करके उसके प्रति अनुक्रिया करते हैं। प्राणी तंत्रिका तंत्र एवं अंत:स्रावी तंत्र के फलस्वरूप स्वयं को वातावरण के प्रति अनुकूलित कर लेते हैं। इन कारणों के फलस्वरूप किसी भी पारितंत्र में प्राणियों में पौधों की तुलना में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।


10. क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?

उत्तर: जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास लैंटाना और हायसिंथ (आइकोर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरी पाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इन हानिकारक प्रजातियों को हमें जानबूझकर विलुप्त करना होगा। इसी प्रकार अनेक विषाणु जैसे-पोलियो विषाणु को विलुप्त करके दुनिया को पोलियो मुक्त करना चाहते हैं।


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