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Important Questions for CBSE Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Kutaj

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CBSE Class 12 Hindi Antra Important Questions Chapter 17 Kutaj - Free PDF Download

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Study Important Questions Class 12 Hindi (Antra) Chapter - 17 कुटज

अति लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                  (1 अंक)

1. लेखक कुटज को किन नामों से संबोधित करता है?

उत्तर: लेखक ने कुटज को पहाडफोड, धरतीधकेल, अपराजित आदि नामों से संबोधित करता है।


2. ‘सोशल सेक्शन’ किसे कहा जाता है?

उत्तर: नाम के पद पर मुहर के लगने को आधुनिक  शिक्षऺित लोग सोशल सेक्शन कहते है।


3. लेखक को कहाँ ऊपजे पेड़ को ‘कुटज’ कहने में विशेष आनंद मिलता है?

उत्तर: गिरिकूट के ऊपजे पेड़ को ‘कुटज’ कहने में लेखक को विशेष आनंद मिलता है।


4. कालीदास के किस रचना का उल्लेख लेखक ने पाठ में किया है?

उत्तर: कालीदास की रचना ‘आषाढ़स्य प्रथम - दिवसे’ का उल्लेख लेखक ने पाठ में किया है।


5. संस्कृत में ‘कुटज’ के किस नाम का उल्लेख मिलता है?

उत्तर: संस्कृत भाषा में ‘कुटज’ को ‘कुटच’ भी कहने का उल्लेख मिलता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                        (2 अंक)

6. हाब्स और हेल्वेशियस ने क्या कहा है ?

उत्तर: पश्चिम देश के हाब्स और हेल्वेशियस जैसे विचारकों ने कहा है कि ‘दुनिया में त्याग नहीं है, प्रेम नहीं है, परार्थ नहीं है, परमार्थ नहीं है, केवल प्रचंड स्वार्थ है’।


7. सिलवाँ लेवी क्या कहकर गये?

उत्तर: सिलवाँ लेवी के अनुसार संस्कृत भाषा में बोले जाने वाले शब्द जैसे फलों, वृक्षों और खेत- बाग़बानी के अधिकांश शब्द आग्नेय भाषा-परिवार के और उनसे मेल खाते है। 


8. उन्नीसवीं शताब्दी के विद्वानों को क्या आश्चर्य हुआ?

उत्तर: उन्नीसवीं शताब्दी के भाषा-विज्ञानी पंडितो को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आस्ट्रेलिया से सुदूर जंगलो में बसी जातियों की भाषा एशिया में बसी हुई कुछ जातियों की भाषा से संबद्ध है। भारत की अनेक जातियाँ वह भाषा बोलती है, जिनमें संथाल, मुंडा आदि शामिल है।


9- संस्कृत सर्वग्रासी भाषा हैं? कैसे?

उत्तर: लेखक संस्कृत को सर्वग्रासी भाषा मानते है क्योंकि इस भाषा ने शब्दों के संग्रह में कोई छूत नही  माना। इस भाषा में बहुत सारी नस्लों के शब्द आकर इसी  के होके रह गये है ।इसलिए लेखक संस्कृत को सर्वग्रासि भाषा मानते है।


10. ‘आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रियं भवति।’ का भावार्थ लिखिए।

उत्तर: ब्रह्मवादी ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश करते है कि सब कुछ इस दुनिया में स्वार्थ के लिए है। पुत्र के लिए पुत्र प्रिय नहीं होता, पत्नी के लिए पत्नी प्रिय नहीं होती सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते है। भाव यह है कि यहाँ सब निजी स्वार्थ के लिए एक- दूसरे से जुड़े होते है। 


लघु उत्तरीय प्रश्न                                                                                (3 अंक)

11. सुख और दुःख मन के भाव है? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक कहता है की अगर व्यक्ति के मन और उसमे उठने वाले भाव उसके वश में है, तो वह सुखी कहलाता है और सुखी हो भी सकता है। क्योंकि कोई इच्छा उसको कष्ट नहीं दे सकता है। दुखी तो वह है, जो दूसरों के कहानुसार चलता है या जिसका मन ख़ुद के वश में नहीं होता है। वह दूसरे के हाथ की कठपुतली समान व्यवहार करने लगता है, अथार्थ दूसरों को ख़ुश करने हेतु सभी कार्य करता है। इसलिए लेखक दुःख और सुख को भन का भाव मानता हैं।


12. लेखक कूटज के पेड़ को बूरे दिनों का साथी मानता है, क्यों? 

उत्तर: लेखक कूटज को एक ऐसा साथी मानता है, जो बुरे दिनों में साथ रहता है। जब यक्ष को रामगिरि पर्वत पर बादल से अनुरोध करने हेतु भेजा था, तो वहाँ कूटज  पेड़ विदयमान था। उस समय  में कूटज के फूल ही काम आए थे। एक ऐसे स्थान पर जहाँ दूब तक पनपता, वहाँ यक्ष ने कूटज के फूल चढ़ा कर मेघ को प्रसन्न किया था। इसको कालिदास ने अपनी रचना में लिखा है। इसलिए लेखक ने कूटज को बुरे दिनो का साथी माना है। 


13. “कूटज, कूट और कुटनी” इन शब्दों से लेखक का आशय स्पष्ट करे।

उत्तर: लेखक हज़ारी प्रसाद जी के अनुसार ‘कूट’ शब्द के दो अर्थ बताए है- ‘घर’ या ‘घड़ा’ । इसी आधार पर उन्होंने ‘कूटज’ शब्द का अर्थ ‘घड़े से उत्पन्न होने वाला’ बताया। असल में यह नाम मुनि अगस्त्य का दूसरा नाम है। माना जाता है की उनकी उत्पत्ति घड़े से हुई थी। अगर ‘कूट’ शब्द की ओर ध्यान दिया जाए तो ‘कूट’ शब्द का मतलब घर होता है। तो लेखक ने घर में देखरेख का कार्य करने वाली बुरी आदतों की दासी को कुटनी कहा है। लेकक कही न कही इन तीनों  शब्दों को एक कड़ी में जोड़कर ज़रूर देखता है।


14. कूटज के पेड़ से हमें क्या शिक्षा मिलती है? टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: कूटज के पेड़ से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें विकट स्थितियों में अपना साहस रखते हुए मनोबल नहीं गिरने देना चाहिए। हमें धैर्य से काम लेते हुए विकट परिस्थितियों में कठिन परिश्रम करते हुए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। जब हम ऐसा करने में सफल होते है, तो मुश्किलों से भरा रास्ता भी आसानी से तय हो जाता है। मुश्किलों के दौर से गुज़रा व्यक्ति सोने की भाँति भट्टी से तपकर निखरकर बाहर आता है। एक बार अपने मेहनत और भुजाबल की शक्तियों से खड़े व्यक्ति को किसी प्रकार की परिस्थितियाँ झुका नहीं सकती।


15. कूटज के जीवन से हमें बहुत सीख मिलती है। टिप्पणी करे।

उत्तर: कूटज के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ निम्नलिखित है- 

(क) गर्व से सिर उठा कर जिन चाहिए।

(ख) मुश्किलों में घबराना नहीं चाहिए।

(ग) कभी भी हमें हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए।

(घ) मुश्किल परिस्थितियों का डटकर सामना करना चाहिए।

(ड) लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहना चाहिए। 

(च) स्वावलंबी बन, दूसरों के सामने मदद हेतु नहीं झुकना चाहिए। 

(छ) जो मिले उसे सहजता के साथ अपना लेना चाहिए 


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न                                                                            (5 अंक) 

16. ‘नाम’ के सम्बंध में लेखक का क्या मानना है?

उत्तर: लेखक कहते है कि नाम का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। नाम ही मनुष्य की पहचान होती है। यदि किसी व्यक्ति का नाम ना हो, तो उसके रूप, रंग, आकार आदि का वर्णन हो जाने के बावजूद भी हम उसे भली - भाँति नहीं पहचान पाएँगे। अगर किसी मनुष्य का नाम याद ना हो तो उसके चेहरे को पहचान लेने के बाद भी उस मनुष्य की पहचान अधूरी सी लगती है। उसको समाज के लोग भी उसके नाम से ही जानते है। नाम ही समाज द्वारा स्वीकृत है। चाहे मनुष्य कितना भी सुंदर हो यदि उसका नाम नहीं है तो उसको लोग पहचानने से इंकार कर देंगे। नाम ही मनुष्य की पहचान है। अगर हम ग़ौर करे तो पायंगे सभी प्राणीयों और वस्तुओं  के लिए एक नाम ज़रूर दिया गया है। इस नाम के आधार पर ही उसे पहचानना सरल हो जाता है। सिर्फ़ उसका नाम सुनके हमें उसके रूप, दोष, आकार, गुण, रंग, धर्म, जाति इत्यादि सबका बोध हो जाता है।


17. ‘कूटज’ कभी हार नहीं मानता’ पाठ के आधार पर इस बात की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: कूटज का पेड़ ऐसे प्रतिकूल वातावरण में गर्व  सिर उठाए जीवित खड़ा है। जहाँ पर दूब भी अपना क़ब्ज़ा नहीं जमा पाती। ऐसी जगह पर कूटज के पेड़ का खड़े रहना और फलना फूलना, उसके हार ना मानने के गुणों की घोषणा करता है। वह यहाँ ही नहीं बल्कि पहाड़ों की बड़ी-बड़ी चट्टानों के मध्य ख़ुद को खड़ा रखता है। तथा उसके अंदर के जल- श्रोतों से स्वयं के लिए जल ढूँढ निकालता है। ऐसे जगहों में वह विजयी खड़ा है। यह कितनी विकट परिस्तिथि है, जिसमें साधारण पेड़ पौधों का जीवित रहना असम्भव है। उसकी इस प्रकार की जीवनी शक्ति को देख हम कह सकते है कि वह कभी हार नहीं मानता। उसके अपने जीवन जीने के प्रति उसका प्रेम और ललक, उसे कभी न हारने वाला बना देती है। वह बुरी से बुरी परिस्थिति  सीना तान गर्व से सिर को उठा, अपना जीवन जीता  रहा है।


18. कूटज के साहस के समक्ष मानवीय कमज़ोरियों की तुलना करिये।

उत्तर: लेखक के अनुसार कूटज का वृक्ष सिर्फ़ जीता ही नहीं है अपितु वह यह सिद्ध कर देता है कि यदि इंसान में जीवन को जीने की ललक हो, तो वह किसी भी प्रकार की बुरी परिस्थितियों से ख़ुद को सरलतापूर्वक उभार सकता है। वह मेहनत कर, अपने गौरव तथा आत्मसम्मान दोनों की रक्षा करता है। दूसरे के भरोसे न जीकर ख़ुद के साहस से जीता है। लेखक कहता है कि कूटज के स्वभाव से यह बात सिखने वाली है कि वह सिर्फ़ जीने के लिए नहीं जी रहा है। उसके अंदर इसके लिए दृढ़ विश्वास है। लेकिन अगर हम मानवों को देखे, तो वह थोड़ी सी कठिनाइयों के आगे अपने घुटने टेक देते है। बहुत से ऐसे इंसान है, जिनके पास जीने की वजह ही नहीं होती, वह बस जीने के लिए जीते है।असल में ऐसे लोगों में साहस के साथ-साथ जीने की लालसा कम होती है। ऐसे लोगों को कूटज के पेड़ से अपनी तुलना कर सीख लेनी चाहिए।


19. स्वार्थ हमें ग़लत मार्ग पर ले जाता है। लेखक के भाव को उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक कहता है कि निजी स्वार्थ हमें अनुचित मार्गों पर लेकर चला जाता है। इस स्वार्थ में निहित मनुष्य ने गगनचुंबी इमारतें बनाई, सागर में बड़े-बड़े पुल बनाए, बड़े-बड़े पानी के जहाज़ बनाए, विमान बनाया। इंसानो के अंदर स्वार्थ की कोई सीमा नहीं है, यह कभी न समाप्त होने वाली, अनंत तक जाती है। अपने जीवन को जीने या यूँ कहिए की रोज़ी-रोटी के कारण ही हम जीने के लिए प्रेरित होते रहते है। लेकिन इन्हीं दोनों कारणों से हम ग़लत मार्ग का चुनाव कर लेते है। हम स्वयं को इतना महत्व देते है की भूल जाते है, हम क्या कर रहे है। लेखक से अनुसार इंसान को सबकी भलाई के बारे में सोचना चाहिए इसमें वह शक्ति है, जो बहुत विराट है।जब इंसान सर्व शक्ति को स्वीकार करता है, तो वह सम्पूर्ण जातियों का कल्याण कर पाने के सक्षम हो जाता है। अगर इंसान में निजी स्वार्थ ना हो, तो उसके अंदर से अहंकार, लोभ-लालच, स्वार्थ, क्रोध इत्यादि नाम मात्र रह जाते है। जो इन सभी चीज़ों से निकलकर बाहर आता है, वह इंसान ही महान कहलाता है। बुद्ध, गुरुनानक, अशोक, महात्मा गांधी इत्यादि इसके उदाहरण हैं।


20. मुश्किल परिस्थितियों से गुज़रकर निकले लोग अक्सर बेहया हो जाते है। क्यों? और कैसे? पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर: इस पाठ में लेखक कूटज को भी बेहया ही बताते है, जैसे कूटज का पेड़ किसी भी जगह, किसी भी परिस्थिति में फल-फूल जाता है। वैसे ही विकट परिस्थितियों से लड़ने के कारण मनुष्य भी स्वभाव से बेशर्म और बेहया हो जाता या यूँ कहें उसमें किसी चीज़ की शर्म नहीं रह जाती है। लोग कैसे भी माहौल में ख़ुद को ढालकर, मौन हो, अपना काम शांति से कर ले जाते है। जैसे पहाड़ों के बीच, कम  में शान से खड़ा कूटज का पेड़ बेहया होकर, अपने जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ते रहकर ख़ुद को विजेता साबित कर लेता है। इसीलिए लेखक कहता है कि बेहया होने का स्वभाव ही उनकी रक्षा करता है और उन्हें मज़बूती से खड़े रखने में मदद करता है। ऐसे लोग अपनी दृष्टि में सही होते हुए अपना रास्ता खोजकर आओगे बढ़ते जाते हैं।

FAQs on Important Questions for CBSE Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Kutaj

1. Who is the author of Class 12 Hindi Antra Chapter 17 – Kutaj?

The writer of Class 1 Kutaj is Shri Hajari Prasad Dwivedi who has described the characteristics of the wild plant in the Himalaya which includes the flower. This flower is called Kutaj. The chapter can be understood comprehensively by referring to Vedantu NCERT Solutions where the explanation is given in detail. This will help the students to get the concept of the chapter and will be able to answer the questions easily. You can always refer to Vedantu’s app or website for the detailed explanation of all the chapters of Class 12 Hindi.

2. How many questions are asked from Class 12 Hindi Antra Chapter 17 – Kutaj?

There are a total number of 10 chapters in the lesson Kutaj which is the 17th chapter in Class 12 Antra. The solutions are comprehensively defined in the Vedantu NCERT Solutions which helps the students to learn the answers from the exercises in a simplified way. They need not waste their time searching for the answers. Learning with understanding is always a difference and further, it gives them the confidence to answer any questions related to the chapter.

3. How does the writer explain the impotence of one's name?

The writer has explained very nicely the importance and the name which everyone has. For any person to be recognized or referred to, a name is required. When we specify anything we tell the name and make others understand or when we talk about someone we refer to by name. Just imagine if there is no name how we can even talk or talk about that person. That would be impossible. So a name for a thing and also for a person is very important.

4. What can we learn from Class 12 Hindi Antra Chapter 17 – Kutaj?

Each one of us learns a very good lesson from this chapter which really will be beneficial in our lives. Kutaj survives loneliness yet bravely. It comes across many difficulties but still withstands everything. Same way in life there will always be ups and downs and one should get demotivated and get depressed instead one should be strong and strengthen themself to face the problems in all the situations and conditions. Students can also download the PDF of important questions free of cost from the Vedantu website or app.

5. How has the writer explained “Kutaj”?

Kutaj is grown among many branches in the forest and also bears flowers. The flower that it bears does not have any speciality or smell. The writer has beautifully explained and compared it with our lives. A simple plant with no speciality and attraction survives amid a forest full of confidence and with self reliability. This is how we should also be confident and self-reliable. Every individual is one of a kind in their way.